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१२-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
तोड़ने वाला नही । अर्थात साधु को किसी का दिल नही दुखाना चाहिए । साधु दूसरे का सुधार भले चाहे, मगर उसका दिल दुखाकर नही, त्यागधर्म का उपदेश देकर, उसे समझा-बुझाकर उसके जीवनसुधार का प्रयत्न करना चाहिए। साधु जो कुछ करे, कर्म की निर्जरा के लिए करे। इसी मे स्व-पर का लाभ है । त्याग एक ऐसी वस्तु है कि जिससे हानि होने का कुछ भी भय नहीं है । त्याग से कल्याण ही होता है । त्यागमार्ग कल्याण का मार्ग है ।
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