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छत्तीसवां बोल
कषायप्रत्याख्यान
शास्त्र कहता है-आत्मन् ! तुझमें अनन्त सामर्थ्य विद्यमान है । तू उसका उपयोग नहीं करता, यह तेरी भूल है। तू अपने शक्ति-सामर्थ्य को काम मे ले । आत्मा के सामर्थ्य को विकसित करने के लिए त्याग करने की आवश्यकता रहती है । त्याग के विषय में ही यहा विचार चले रहा है । गौतम स्वानी अब कषाय के त्याग के विषय में प्रश्न करते हैं
मूलपाठ प्रश्न-कषायपच्चक्खाणेणं भते ! जीवे कि जणयई ?
उत्तर- कसायपच्चक्खाणण वीयरायभावं जणयई. वीयरागभावपडिवन वि यणं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥३६॥
शब्दार्थ
प्रश्न--भगवन् । कषाय का त्याग करने से जीव को क्या लाभ होता है ?