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उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व अंलकारों का सुन्दर प्रयोग किया है।
संस्कृत गीतिकाव्य की दृष्टि से विनयविजयजी की कृति शान्तसुधारस उनके कवित्व का उत्कृष्ट निदर्शन है। इसमें अनित्य,अशरण, संसार आदि १६ भावनाओं को २३४ पद्यों में निरूपित किया गया है। इसमें अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, द्रुतविलम्बित, प्रहर्षिणी, मन्दाक्रान्ता, मालिनी, शिखरिणी
आदि २० छन्दों का प्रयोग किया गया है। अनित्य भावना को भैरव राग में गाते हुए इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है।
सुखमनुत्तरसुरावधि सदतिमेदुरं, कालतस्तदपि कलयति विरामम्। कतरदितरत्तदा वस्तु सांसारिकं,
स्थिरतरं भवति चिन्तय निकामम् ।। इसी प्रकार अशरण भावना का वर्णन शार्दूलविक्रीडित छन्द में इस प्रकार किया है
ये षट्खण्डमहीमहीनतरसा निर्जित्य बभ्राजिरे, ये च स्वर्गभुजो भुजोर्जितमदा मेदुर्मुदा मेदुराः । तेऽपि क्रूरकृतान्तवक्त्ररदनैर्निर्दल्यमानाहठा,
दत्राणाः शरणाय हा दशदिशः प्रेक्षन्त दीनाननाः ।।" इस श्लोक में वर्णन की विलक्षणता तथा अलंकारों का सुन्दर प्रयोग है। महीमही, भुजोभुजो, मेदुमेदु में यमक अंलकार की छटा दर्शनीय है। अनुप्रास अलंकार भी कवर्ण,दवर्ण आदि के प्रयोग में स्पष्ट दृग्गोचर हो रहा है। चक्रवर्ती सम्राट् की दीनता का कथन चमत्कृत करने वाला है।
स्तोत्र साहित्य की दृष्टि से भी विनयविजयजी का कवित्व उल्लेखनीय है। उन्होंने अर्हन्नमस्कारस्तोत्र, जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आदि की भी रचना की है। ये कृतियाँ भी अपने आप में उच्च कोटि की हैं।
'लोकप्रकाश' विनयविजयजी की एक अद्भुत कृति है जो मूलतः जैन दर्शन का समग्र दृष्टि से ३७ सों में प्रतिपादन करता है तथापि इसमें यथावसर उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
गुजराती भाषा में उपाध्याय विनयविजय की अनेक कृतियाँ हैं। जो उनके कवित्व की निदर्शन हैं। अध्यात्मगीता, आदिजिनविनति, उपाधान स्तवन, गुणस्थानकगर्भितवीर स्तवन, जिनचौवीसी, श्रीपालराजानो रास, पंच समवाय स्तवन, पुण्यप्रकाश स्तवन, विहरमाण जिनवीसी, षडावश्यक स्तवन आदि अनेक कृतियाँ इसकी साक्षी हैं।
प्राकृत एवं हिन्दी भाषा में भी इन्होंने काव्य रचना की थी। 'जिणचेइयथवण' प्राकृत भाषा में