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लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन
यद्यपि 'उपाध्याय' के रूप में अधिक रही है, किन्तु यशोविजय जी उन्हें महोपाध्याय एवं न्यायाचार्य विशेषणों से सुशोभित कर रहे हैं। इससे ऐसा भासित होता है कि वे तपोगच्छ में उपाध्याय के पद से अलंकृत हुए और विद्या के क्षेत्र में उन्होंने महोपाध्याय एवं न्यायाचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण कर तत्सम्बन्ध उपाधियाँ प्राप्त की। व्यक्तित्व
उपाध्याय विनयविजयगणी तपोगच्छ की परम्परा के महान् विद्वान् सन्त थे। वे उत्कृष्ट कवि, महान् वैयाकरण, दार्शनिक, आगमवेत्ता, आगमेतर ग्रन्थों के गहन अध्येता, टीकाकार, भूगोल-खगोल एवं गणित के ज्ञाता, तथा जैनदर्शन के कुशल प्रस्तोता थे। चारित्रिक दृष्टि से उनमें विनयशीलता, कृतज्ञता, सरलता, अध्यवसायशीलता आदि अनेक गुण विद्यमान थे। उनके व्यक्तित्व की इन विशेषताओं पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला जा रहा है - 1.उत्कृष्ट कवि
उपाध्याय विनयविजय संस्कृत, प्राकृत, गुजराती एवं हिन्दी भाषा में काव्य रचना करने में निपुण थे। संस्कृत भाषा में इन्दुदूत, उनकी प्रसिद्ध रचना है। जो कालिदास के मेघदूत की भांति संदेश काव्य की शैली में मन्दाक्रान्ता छन्द में विरचित है। इस काव्य में १३१ श्लोकों में विनयविजय ने जोधपुर में वर्षावास करते समय सूरत में विराजमान अपने आचार्य श्रीविजयप्रभसूरिजी को चन्द्रमा के माध्यम से भावपूर्ण सन्देश प्रेषित किया है। इस काव्य में जोधपुर का वर्णन करते हुए विनयविजय कहते हैं -
यत्रेभ्यानां भवनततयः काश्चिदद्रेस्तयग्रं, प्राप्ताः काश्चित् पुनरनुपदं सन्ति वासामधस्तात् । काश्चिदभूमा-वपि भृशवल-त्केतवः कान्तिदृप्ता,
निर्जेतुंद्या-मिव रुचिमदात् प्रस्थिता निर्व्यवस्थम् ।।" इस श्लोक में जोधपुर के मेहरानगढ़ से सटे हुए भवनों का एवं अधोभाग में स्थित भवनों का उत्प्रेक्षा अलंकार में सुन्दर वर्णन किया गया है। मार्ग का निरूपण करते हुए कवि ने कितनी सुन्दर पदावली का प्रयोग किया है
मार्ग तस्य प्रचुरकदली-काननैः कान्तदेशं, स्थाने स्थाने जलधिदयिता-सन्ततिध्वस्तखेदम् । आकान्तः-करणविषये स्थापयोक्तं मयेन्दो,
ऽभीष्टं स्थानं व्रजति हि जनःप्राञ्जलेनाध्वना द्राक् ।। कवि ने इन्दुदूत सन्देशकाव्य में उपमा, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यास, श्लेष आदि विविध