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अन्यत्र कहा गया है “विष्णु पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।" यह भी कहा गया है कि रथारूढ़ वामन के दर्शन पर पुनर्जन्म नहीं होता “रथारूढ़ वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते” ज्योतिषाचार्य वराह मिहिर ने वृहज्जातक ( २५-१५) में नवमेश व पंचमेश से पूर्वजन्म और परलोक पर विचार किया है। चार्वाक व लोकायत को छोड़कर प्रायः सभी दर्शनों ने पुनर्जन्म को स्वीकार किया । न्यायसूत्र कहता है “ईश्वरः कारणं कर्माफलस्य दर्शनात् (४) न्यायसूत्र तो नवजात शिशु के मुख पर हर्ष, शोक, भय को पूर्व जन्म का कारण गिनता है (३.१.१६ ) । वैशेषिक में चौबीस गुणों में अदृष्ट के कारण जीव का आवागमन अनादि है। सांख्य दर्शन ने धर्माधर्मरूपी संस्कार (पंच क्लेशों से क्लिष्ट वृत्ति) को आशय, वासना, कर्म कहा है। कैवल्य पद ही मोक्ष है । प्रशस्तपाद विज्ञान दीपिका में संचीयमान प्रारब्ध, संचित कर्म के विवेचन का आधार जन्म-जन्मान्तर गिनते हैं। उन्होंने पेट और अन्न के प्रतीक से यह समझाया है। वामदेव भट्ट ने जन्म मरण विचार में कहा है कि आतिवाहिक शरीर “मृत से आगामी शरीर का द्वार है - यान कैवल्योपनिषद (१-१४) कहता है
जातश्चैव मृतश्चैव जन्म चैव पुनः पुनः । पुनश्च जन्मान्तर कर्मयोग योगात् स एव जीवः स्वपिति प्रबुद्धः ॥
बौद्ध धर्म भी पुनर्जन्म में विश्वास करता है। जातक कथाएं इसका प्रमाण हैं, वे बुद्ध के पूर्व जन्म भी कथाएं हैं । स्वय बुद्ध ने कहा कि उनके पैर में चुभने वाला कांटा पूर्वजन्म के प्राणि बध का विपाक था। धम्मपद में बुद्ध ने पुनर्जन्म के संबंध में अनेक गाथाएं दी हैं। उन्होंने यमलोक का भी वर्णन किया है। पुप्फवग्गो में ( १-२ ) उन्होंने स्पष्ट कहा कि पुण्य कर्म झील की भांति कर्दम रहित रहता है एवं आवागमन से मुक्त हो, निर्वाण प्राप्त कराता है। आधुनिक चिन्तकों के लिए यह मत ध्यातव्य है । श्री अरविन्द चेतना के साथ-साथ अतिमानव की अवतारणा में विश्वास रखते थे (ओवर माइन्ड एवं सुपर माइन्ड) | स्वामी विवेकानन्द ने कर्म सिद्धान्त की मार्मिक विवेचना की है। वे कहते हैं "प्रत्येक क्रिया प्रतिक्रिया बनकर पुनः हमारे पास आती है। उसी प्रकार हमारे कार्य अन्य मनुष्यों को भी प्रभावित करते हैं।" एलडुअस हक्सले ने तो देहान्तर सिद्धान्त का समर्थन किया है। भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी पुनर्जन्म की मान्यता सिद्धान्ततः स्वीकृत है। बेबिलोनियन निवासी मरणोपरान्त व्यक्ति की देह का आलेपन करते थे कि वह पुनः स्वर्ग में अवतीर्ण होगी । अवेस्ता में स्वर्ग और नरक का वर्णन मिलता है। ग्रीक दार्शनिक प्लेटो व पेथोगोरस का पुनर्जन्म में विश्वास था। मेक्सिको के प्राचीन निवासी भी पुनर्जन्म में आस्था रखते थे। सीरियन सम्प्रदाय "बार्डिसनीज" का सूक्ष्म शरीर में विश्वास था। दक्षिण अमेरिका के निवासी आवागमन में विश्वास रखते थे। इस्लाम धर्म में रफजिया व इसमाईली सम्प्रदाय कर्मवाद व पुनर्जन्म को मानते थे। सूफी जलालुद्दीन कहता है
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