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उपाध्यायजी ने तर्कभाषा के तर्क पद से जैन तर्क के अनुसार अर्थ परीक्षा के मुख्य साधन प्रमाण-नय-और निक्षेप-तीनों को लिया । प्रमाण और नयों को जैन विद्वान चिरकाल से अर्थके तत्त्वज्ञान का साधन मानते आ रहे हैं। तत्त्वार्थ सूत्रका सूत्र है-प्रमाणनयरधिगमः ।
निक्षेप को जैन ताकिकों ने उतनो प्रधानता नहीं दी थी। पर उपाध्यायजी ने निक्षेप को तक के अन्दर लिया। उपाध्यायजी भी अन्नभद्र के समान ई० स० सत्रहवीं शताब्दी के हैं । संभवतः सुदूर दक्षिण में होने के कारण तके संग्रह का उस समय तक भारत के अन्य प्रान्तों में प्रचार नहीं हुआ था। तर्क भाषा की व्याख्या--
उपाध्यायजी की तर्कभाषा की व्याख्या संस्कृत और हिन्दी में हो चुकी है। श्री विजय नेमिसूरीश्वरजी के शिष्य श्री विजयोदयसूरीश्वरजी की संस्कृत में 'रत्नप्रभा' टीका विक्रमाउद २००७ में मुद्रित हो चुकी है।
. पं० सुखलालजी की 'तात्पर्य संग्रहा' नामक संस्कृत वृत्ति विक्रमाग्द १९९४ में छप चुकी है।
पं० शोभाचन्द्र भारिल्लजी के द्वारा रचित हिन्दी अनुवाद सन् १९६४ में प्रकाशित हो चुका है। ____ये सभी व्याख्यायें उपयोगी हैं और तर्कभाषा के अर्थ को समझने में सहायक हैं।