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प्रकाश्यते तस्य कृते मर्यषा । यहां पर तर्क पद से न्याय को कहा गया है।
केशव मिश्र को तर्क भाषा के अनन्तर अन्नं भट्ट ने न्यायसिद्धांत में प्रवेश के अभिलाषियों के लिये तर्क संग्रह की रचना की । इस तर्क संग्रह की एक पुरानी प्रति ई. स. १७९२ में लिखी हुई मिली है । अतः अन्नम्भट्ट ई. सन् को सत्रहवीं शताब्दी में थे।
यद्यपि प्राचीन अर्वाचीन विद्वानों ने तर्क पद का न्याय शास्त्र के अर्थ में प्रयोग किया है तो भी तक संग्रह को स्वोपज्ञ दीपिका व्याख्या में अन्नं भट्ट ने तर्क पद का अथ द्रव्य आदि पदार्थ किया है । वे कहते हैं-तय॑न्ते प्रतिपाद्यन्ते इति तर्काः द्रव्यादिपदार्थाः, तेषां संग्रहः संक्षेपेण स्वरूपकथनं क्रियत इत्यथः।
परन्तु यदि तर्क पद का प्रयोग न्यायशास्त्र में माना जाय और न्याय शास्त्र के प्रतिपादित अर्थों का संक्षेप से प्रतिपादन होने के कारण अन्य को तक संग्रह कहा जाय तो अनुपपत्ति नहीं प्रतीत होती। योग के बलसे तर्क पद को द्रव्यादि पदार्थों का वाचक न मानकर रूढि के बल से तर्क को न्याय का वाचक मानना उचित प्रतीत होता है । [प्रस्तुत ग्रंथ......]
न्याय सिद्धान्तों के प्रतिपादक ग्रन्थ के लिये वैदिक विद्वान केशमिश्र-अन्नं भट्ट आदि और बौद्ध मोक्षाकर गुप्त के समान उपाध्याय श्रीयशोविजयजी ने जैन तत्त्वज्ञान के अनुसार अर्थ परीक्षा के साधनों का लघु रूप में प्रकाशन करने के लिये जिस ग्रन्थ का निर्माण किया उसमें तक पद का व्यवहार किया और चिर-प्रचलित तर्कभाषा नाम रक्खा ।