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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता 59
शीतलनाथजी के निर्वाण का अन्तरकाल नौ कोटि सागरोपम था ।238
कुमार शीतलनाथ के आयु का चतुर्थ भाग व्यतीत होने पर उनका विवाह करके उनका राज्याभिषेक किया गया। आयु का चतुर्थ भाग शेष रहने तक उन्होंने सुखपूर्वक शासन किया। फिर एक दिन जंगल में भ्रमण के दौरान देखा, कि थोड़ी देर पहले जो पाले का समूह समस्त पदार्थों को आवृत किए हुए था वह नष्ट हो गया । यहीं पदार्थों की क्षणभंगुरता देख उन्हें आत्मज्ञान हो गया । तब अपने पुत्र को साम्राज्य सौंपकर शीतलनाथजी शुक्रप्रभा नामक पालकी में बैठकर सहेतुक वन में गये। वहाँ उन्होंने माघकृष्णा द्वादशी के दिन सायंकाल के समय पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में दो उपवास का नियम लेकर एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया। 29
केवलज्ञान : दीक्षा के पश्चात मुनि शीतलनाथ जी 3 वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहे। तब वे एक दिन बेल के वृक्ष के नीचे दो दिन के उपवास का नियम लेकर ध्यानस्थ हुए। तब पौषकृष्णा चतुर्दशी के दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में सायंकाल के समय केवलज्ञान प्राप्तकर भगवान शीतलनाथ 10वें तीर्थंकर बने ।
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धर्म-परिवार : भगवान शीतलनाथजी के धर्मपरिवार में 81 गणधर थे। 1400 पूर्वधारी थे, 59200 शिक्षक थे, 7200 अवधिज्ञानी थे, 7000 केवलज्ञानी थे, 12000 विक्रिया ऋद्धिधारी मुनि थे, 7500 मनः पर्ययज्ञानी थे। इस प्रकार सब मुनियों की संख्या 1 लाख थी । धारणा आदि 1 लाख 80 हजार आर्यिकाएँ थी। 2 लाख श्रावक तथा 3 लाख श्राविकाएँ उनकी अनुयायी थे। असंख्यात देव तथा संख्यात तिर्यंच भी उनकी सेवा करते थे।"
निर्वाण : असंख्यात देशों में विहार करते हुए भगवान शीतलनाथजी आयु के एक माह शेष रहने पर सम्मेदशिखर पहुंचे। वहाँ उन्होंने एक माह का योग-निरोध कर प्रतिमायोग धारण किया और एक हजार मुनियों के साथ आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन सायंकाल के समय पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में समस्त कर्मों को नष्ट करके मोक्षगामी हुए। 22
11. श्रेयांसनाथजी :
इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सिंहपुर नगर में इक्ष्वाकुवंशी विष्णु राजा का राज्य था। उनकी महारानी सुनन्दा ने एक बार ज्येष्ठ कृष्णा षष्ठी के दिन श्रवण नक्षत्र में प्रातः काल चौदह स्वप्न देखे तथा अपने मुख में प्रवेश करता हुआ हाथी देखा। उसी समय श्रेयांसनाथ जी ने माता के गर्भ में प्रवेश किया । यथासमय नौ माह पश्चात् फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन विष्णुयोग में तीन ज्ञान के धारक प्रभु श्रेयांसकुमार का जन्म हुआ । राज्य में चारों ओर सुख शान्ति छा गई। देवों ने पंचम क्षीर सागर से जल लाकर सुमेरु पर्वत पर उनका अभिषेक करके प्रभु को पुनः माता के पास सुला