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156 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
शास्त्रार्थ विधि : शास्त्रार्थ विधि प्राचीन शिक्षा पद्धति की एक प्रमुख विधा है। इस विधि में पूर्व और उत्तर पक्ष की स्थापना पूर्वक विषयों की जानकारी प्राप्त की जाती है। एक ही तथ्य की उपलब्धि विभिन्न प्रकार के तर्कों, विकल्पों और बौद्धिक प्रयोगों द्वारा की जाती है। जैन न्याय के समस्त ग्रन्थों में शास्त्रार्थ विधि का वर्णन पाया जाता है। प्रमाण नय निक्षेप द्वारा वस्तु का स्वरूप प्रतिपादन शास्त्रार्थ प्रणाली के द्वारा ही किया गया है।
इस विधि में गुरु शिष्य में शास्त्रार्थ करने की पद्धति द्वारा तत्काल उत्तर- प्रत्युत्तर देने की शक्ति का विकास करता है । इस शास्त्रार्थ विधि में स्वपक्ष सिद्धि और पर पक्ष में दूषणोद्भावना की प्रक्रिया का विवेचन किया गया है। शास्त्रों का सम्यग्चारित्र परिज्ञान इसी विधि द्वारा प्राप्त किया जाता था ।
उपदेश विधि : उपदेश विधि का प्रमुख रूप उपदेश रूप में शिक्षा देना है। इसका वास्तविक रहस्य गुरु द्वारा भाषण के रूप में विषय का प्रतिपादन करना है। इस विधि का उपयोग उसी समय किया जाता है, जब शिष्य प्रौढ़ हो जाता है और उसका मस्तिष्क विकसित हो प्रमुख विषयों को ग्रहण करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है ।
उपक्रम या उपोद्घात विधि : वर्णनीय विषय को शिष्य के मस्तिष्क में पूर्णतया प्रविष्ट कर देना उपक्रम पाठ विधि है, इसी का दूसरा नाम उपोद्घात भी है। आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, अभिधेय और अर्थाधिकार ये उपक्रम के पाँच भेद हैं। आदि क्रम, मध्यक्रम और अन्त्यक्रम द्वारा वस्तुओं का प्रतिपादन करना अनुपूर्वी है । क्रमपूर्वक विषयों का परिज्ञान कराना भी अनुपूर्वी में परिगणित है ।
नामविधि में विस्तारपूर्वक वस्तुओं के नामों का प्रतिपादन किया जाता है। एक प्रकार से इसकी गणना निक्षेप विधि में की जा सकती है ।
प्रमाण विधि में वस्तु का सर्वांगीण निरुपण और नयविधि में एक-एक अंश का विवेचन किया जाता है ।
अभिधेय में अर्थ का विभिन्न दृष्टिकोणों द्वारा कथन किया जाता है । द्रव्य और भावपूर्वक पदों की व्याख्या प्रस्तुत कर विविध भंगावलियों की स्थापना की जाती है । एक ही विषय या वस्तु को अनेक रूपों में प्रतिपादित कर पाठ्य विषयों को सरल और बोधगम्य बनाया जाता है ।
पंचांग विधि : पञ्चांग विधि के स्वाध्याय सम्बन्धी पाँच अंग हैं। इन पाँचों अंगों द्वारा विषय के मर्म को समझा जाता है । विद्यार्थी सर्वप्रथम वाचना का प्रयोग करते है । वाचना का अर्थ पढ़ना है । तदनन्तर पृच्छना - पूछकर विषय के मर्म को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। अधिगत विषय को बार-बार अभ्यास द्वारा स्मरण रखने का प्रयास अनुप्रेक्षा है । मनन और चिन्तन किये गये विषय की धारणा बनाये रखने के लिए घोख - घोखकर याद करना घोष स्वाध्याय है । उपदेश के रूप में विषय