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सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव 171
1. साम्राज्य विस्तार की लालसा की पूर्ति हेतु ।
2. आत्माभिमान की रक्षा हेतु ।
3. नारी - स्वयंवर या अन्य किसी अवसर पर नारी के लिए युद्ध होना ।
युद्ध चाहे किसी भी कारण से हो किंतु युद्ध में नियमों का उल्लंघन नहीं होता था। साम, दाम, दण्ड और भेद से किसी प्रकार युद्ध को टालने का प्रयास करते थे। युद्ध करने वाले विजिगीषुओं के लिए यह नियम प्रचलित था, कि शत्रु यदि शक्तिशाली न हो तो उसके साथ युद्ध छेड़ देना चाहिये । गुप्तचरों तथा दूतों के द्वारा विपक्षी राजा की शक्ति का पहले से पता लगा लिया जाता था, और उसी के अनुरूप मन्त्रिपरिषद् की सलाह से युद्ध करने अथवा न करने का निर्णय लिया जाता था । युद्ध की आचार संहिता पर भी जैन अहिंसा का प्रभाव था । इसी भावना से प्रेरित होकर कि सेना का अनावश्यक विनाश न हो, दोनों ही पक्ष वाले परस्पर में ही द्वन्द्व युद्ध करके विजय का निर्णय कर लेते थे । भरत और बाहुबलि ने सैन्ययुद्ध को रोककर आपस में ही मल्लयुद्ध, जलयुद्ध और दृष्टियुद्ध किया । इस प्रकार युद्ध की आचार संहिता धर्म नीति पर अवलम्बित थी ।
आर्थिक विचार एवं आर्थिक समृद्धि : अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जिसमें मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं - उत्पादन, उपभोग, विनिमय और वितरण का अध्ययन किया जाता है। जिसे मुद्रारूप मापदण्ड में मापा जा सके अर्थात् अर्थशास्त्र में भौतिक कल्याण का अध्ययन किया जाता है। आदितीर्थंकर ऋषभदेव ने इसी अर्थशास्त्र की शिक्षा अपने पुत्र भरत को दी थी ।
धन कमाना, अर्जित धन का रक्षण करना, पुनः उसका संवर्द्धन करना और योग्य पात्रों को दान देना आदि बातों को अर्थशास्त्र के अन्तर्गत रखा गया है। मनुष्य को दुर्लभता और अभाव का निरन्तर सामना करना पड़ता है। अर्जन के साधन भी सीमिति हैं, अतएव अनिवार्यता के आधार पर आवश्यकताओं की प्राथमिकता एवं उनकी पूर्ति के लिए सीमित साधनों का सन्तुलित रूप में प्रयोग करना आर्थिक सिद्धान्त है। साधनों की निर्दोषता एवं सदोषता से ही साध्य भी निर्दोष एवं सदोष होता है। अतएव आजीविका के लिए प्राप्त साधनों का निर्दोष रूप में व्यवहार करना भारत में श्रेयस्कर समझा गया है।
आर्थिक क्रियाओं का प्रारम्भ उपभोग या उपयोगिता से होता है और उनकी समाप्ति भी उन्हीं दोनों से होती है । मूलतः आर्थिक क्रियाओं का जन्म मनुष्य की आवश्यकताओं से होता है, जिनकी पूर्ति अत्यन्त आवश्यक है । आवश्यकताएँ शारीरिक एवं मानसिक वेदना उत्पन्न करती है, जिससे बैचेनी उत्पन्न होती है और बैचेनी के कारण मनुष्य का जीवन विश्रृंखलित हो जाता है। इसी कारण उपयोगिता महत्त्वपूर्ण है। यह उपयोगिता, उपभोग या उत्पादन की समानार्थक है । जब उपयोगिता पूर्ण हो जाती है तो सन्तुष्टि प्राप्त होती है । मनुष्य के दुःख का कारण भौतिकता के