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नीति मीमांसा * 459
5. कूडलेहकरणे (कूट लेखकरण) : झूठा लेख (दसतावेज) या झूठे
बहीखाते लिखना। 34
इन पाँचों अतिचारों को त्यागकर ही साधक अपने व्रत का समुचित रूप से पालन कर सकता है।
3. स्थूल - अदत्तादान विरमण व्रत : अचौर्य का साधारण अर्थ चोरी नहीं करना है, किंतु इसका तात्विक अर्थ यह है, कि प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे के अधिकारों पर आघात नहीं करना चाहिये। श्रावक मन, वचन तथा काया से जीवन पर्यंत इस प्रकार की चोरी करने तथा किसी अन्य के द्वारा करवाने के त्याग की प्रतिज्ञा करता है।” इस व्रत के पाँच अतिचार निम्नलिखित हैं
1. तेनाहडे (स्तेनहत): चोरी द्वारा लाई हुई वस्तु को ग्रहण करना। 2. तक्करपओगे (तस्कर प्रयोग): चोरी का उपाय साधन बताना। 3. विरुद्धरज्जाइकम्मे (विरुद्ध राज्यातिक्रम) : राज्य के विरुद्ध कार्य
करना। 4. कूडतुलकूडमाणे (कूटतुलाकुटमान) : वस्तु के बेचने, खरीदने के
प्रमाणों (तराजु, बाट आदि) को कम-बढ रखना। 5. तप्पडिरुवगववहारे (तत्प्रति रुपक व्यवहार) : अधिक मूल्य वाली
वस्तु में उसके समान कम मूल्य वाली वस्तु को मिलाकर बेचना।" इन उपर्युक्त अतिचारों का त्याग करके ही श्रावक समुचित रूप से अचौर्य अणुव्रत का पालन कर सकता है।
4. स्वदार संतोष (ब्रह्मचर्य) : श्रावक अपनी परिणीता स्त्री से ही पूर्ण संतोष रखकर अन्य स्त्रियों के मन, वचन तथा कार्य से जीवन पर्यंत मैथुन सेवन करने तथा करवाने का त्याग स्वदार संतोष व्रत है।” श्रावक अपनी स्त्री के प्रति भी अति कामुकता के त्याग की प्रतिज्ञा करता है। स्वदार संतोष के पाँच अतिचार निम्नलिखित
1. इत्तरिय परिग्गहियागमणे : धनादि देकर कुछ समय के लिए रखी हुई
स्त्री से व्यभिचार करना। 2. अपरिग्गहियागमणे : विधिवत विवाह न हुआ हो उसके साथ व्यभिचार
करना। 3. अनंगक्रीड़ा : काम सेवन से भिन्न अंगों के द्वारा काम सेवन। 4. परविवाह करणे : अपनी संतान को छोड़कर अन्य लोगों के विवाह
करवाना। 5. कामभोगात्तिव्वाभिलासे : काम भोग की तीव्र अभिलाषा करना। उपर्युक्त पाँचों अतिचारों का त्याग करके ही साधक स्वदार संतोष व्रत का