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नीति मीमांसा* 457
कारण उनका एक देश से पालन करते हुए उपासक धर्म को स्वीकार करता है। सागार चारित्र रूप गृहस्थ धर्म छोटा है, अणु है, किंतु वह हीन एवं निन्दनीय नहीं है, वरन् उसे भी मोक्षमार्ग कहा गया है। इस सागार धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति को श्रावक कहते हैं। उसे गृहस्थ, उपासक, देशविरत आदि नामों से भी जाना जाता है। श्रद्धापूर्वक निर्ग्रन्थ प्रवचन श्रवण करने से श्रावक श्रमण की उपासना के कारण श्रमणोपासक एवं व्रतों का एकदेश से पालन करने के कारण अणुव्रती कहलाता है। श्रावक शब्द से निम्नलिखित लक्षण ध्वनित होते हैं -
श्रा - श्रद्धावान, व - विवेक, क - क्रिया। __ अर्थात् श्रावक श्रद्धापूर्वक आंशिक रूप से सावध योगों का त्याग कर क्रियावान रहता हुआ विवेकपूर्वक जीवन यापन करता है। आत्म साधना में भी तत्पर रहता है।
12 गृही धर्म 11 प्रतिमा तथा अपश्चिम मारणान्तिक संल्लेखना, इस प्रकार कुल 24 प्रकार का श्रावक धर्म हैं।
गृही धर्म : इन व्रतों का पालन श्रावक गृह में रहकर ही करता है, अतः इन्हें गृही धर्म कहा है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार पाँच अणुव्रत मूल गुण रूप तथा सात शीलव्रत उत्तरगुण रूप हैं। इस प्रकार श्रावक के 12 धर्म ही कहे गए हैं। जबकि दिगम्बर परम्परा में श्रावकों के मूलगुण 8 और उत्तर गुण 12 माने जाते हैं। सर्वप्रथम इनका उल्लेख स्वामी समन्तभद्र ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में किया है। परवर्ती सभी दिगम्बराचार्यों ने इनका उल्लेख किया है।
___ सागार धर्मामृत में श्रावक की परिभाषा करते हुए लिखा है, कि जो देव, धर्म, मन्त्र, औषधि, आहार आदि किसी भी कार्य के लिए जीव घात नहीं करता, न्यायपूर्वक आजीविका करता हुआ श्रावक के बारह व्रतों का और ग्याहर प्रतिमाओं का आचरण करता है, उसे चर्या का आचरण करने वाला नैष्ठिक श्रावक कहते हैं।
इसी प्रकार तत्त्वार्थ सूत्र में उमास्वाती ने आगार धर्म का विवेचन करते हुए लिखा है, कि आगारी अणुव्रतधारी होता है। वे दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदण्ड, सामायिक, पौषधोपवास, उपभोग परिभोग, परिमाण और अतिथि संविभाग व्रतों से सम्पन्न होते हैं। मारणान्तिक संल्लेखना के आराधक भी होते हैं।"
दिगम्बर परम्परा के अधिकांश शास्त्रों में आठ मूल गुणों में पाँच तो अणुव्रत ही माने गये हैं। साथ में मद्य, मांस और मदिरा सेवन के निषेध रूप तीन मूल गुण और कहे गए हैं। लेकिन पाँच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत, ये संयम के आचरण हैं।” ये विवेचन कुन्दकुन्दाचार्य के चारित्र पाहुड़ में मिलता है। अतः मुख्य रूप से दोनों ही परम्पराओं में श्रावक के 12 व्रतों व 11 प्रतिमाओं का ही उल्लेख है।
अणुव्रत : अणु का अर्थ है, लघु। चूँकि अणुव्रत महाव्रतों की अपेक्षा लघु हैं, अतः इन्हें अणुव्रत कहा है। श्रावक गृहस्थ होने के कारण हिंसादि महाव्रतों का संपूर्ण