Book Title: Jain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Author(s): Minakshi Daga
Publisher: Rajasthani Granthagar
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476 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
86. अह पच्छा उइजति, कम्माऽणाण फला कडा।
एवमस्सासि अप्पाणं, णच्चा कम्मविवागयं । उ.सू., 2/41 87. णिरङ्कगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो।
जो सक्खं णाभिजाणामि, धम्मं कल्लाण-पावगं ॥ उ.सू., 2/42 88. अभूजिणा अस्थि जिणा अदुवा वि भविस्सइ ।
भुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खूणं चिंतए । उ.सू., 2/45 89.i) इच्छा-मिच्छाकारो तधाकारो व आसिआ णिसिही।
आपुच्छा छंदण सणिमंतणाय उवसंपा॥ - मूलाचार, वट्केराचार्य, समाचाराधिकार,
गाथा 125 ii) उत्तराध्ययन सूत्र 26 उ.सू. 2/2-7 90. पढ़मं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई।
तइयाए भिक्खायरियं, पुणो चउत्थीइ सज्झायं ॥ उसू०, 26/12 91. पढसं पोरिसी सज्झायं, बीयं झाणं झियायई।
तइयाए णिद्दमोक्खं तु, चउत्थी भुजो वि सज्झायं ।। उ.सू.. 26/18 92. i) सामाइयचउवीसत्थव वंदणयं पडिक्कमणं।
पच्चक्खाणं च तहा काओसग्गो हवदि छट्ठो। मूलाचार, 7/5-6 _ii) प्रवचनसार - कुन्दकुन्दाचार्य, गा. 207-209 तक 93. पंचविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा-समाइयसंजमे, छेदोवट्ठावणियसंजमे, परिहार
विसुद्धिसंजमे, सुहुम-संपरागसंजमे, अहक्खायचरित्त संजमे॥ - स्थानांगसूत्र,
पंचमस्थान, उ. 2, गा. 139 94. (i) समवायांग, 61, (ii) निर्मायं चरतस्तपस्तदुभयं बाह्यं तथा अभ्यान्तरं,
षोढ़ाऽत्राऽनशनादि बाह्यमितरत षोद्वैव चेतुंचरेत् ।। अनगार धर्मामृत, पं. आशाधर, 7/4 95. अणसण अवमोदरियं रस परिचाओ यवुत्ति परिसखा। कायस्सवि परितावो विवित्त
सयणासणं छटुं ।। - मूलाचार, गा. 346, पंचाचाराधिकार . छव्विहे अब्भंतरिए तवे पण्णत्ते, तंजहा-पायच्छित्त, विणओ वेयावच्चं, सज्झाओ,
झाणं, विउसग्गो। स्थानांग सूत्र, स्थान 6, सूत्र 66 97. पायच्छितं विणओ वेज्जावच्चं तहेव सज्झायं ।
झााणं विडस्सग्गो अब्भतरओ तवो एसो ॥ - मूलाचार, पंचाचाराधिकार, गा. 360,
वट्केराचार्य 98. वदसमिदिसिलसंजम परिणामो करणणिग्गहो भावो।
सो हवदि पायछित्तं अणवरयं चेव कायव्वो॥ - नियमसार, सू. 113, कुन्दकुन्दाचार्य 99.i) चउव्विहा खलु विणयसमाही भवइ, तंजहा - 1. अणुसासिज्जतोसुस्सूसइ, 2. सम्म
संपडिवज्जइ, 3. वेयमाराहयइ, 4. णय भवइ अत्तसंपग्गहिए ॥ - दशवैकालिक सूत्रशय्यम्भव स्वामी, 9/4/2 अब्भुट्ठाणं गहणं उवासणं पोसणं च सक्कार। अंजलिकरणं पणमं, भणिदमिह गुणाधिाणाणं हि ॥ प्रवचनसार-चरणानुयोग सूचक चूलिका, गा. 262
ii)

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