Book Title: Jain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Author(s): Minakshi Daga
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 476
________________ 474 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन आचारांग, सुधर्मास्वामी, 2/15/790-791 तत्त्वार्थसूत्र, वाचक उमास्वाति, 9/4 45. 46. 47. 48. 49. 50. 51. 52. 53. 54. 55. 56. 57. 58. 59. 60. 61. 62. 63. 64. 65. 66. 67. स्थानांग टीका, सुधर्मास्वामी, अभयदेवसूरि स्था० 5-3 की टीका तत्त्वार्थसूत्र, उमास्वाति 9/5 उत्तराध्ययनसूत्र, सुधर्मास्वामी, 24 / 9, 10 णिसंते सियाऽमहरी, बुद्धाणं अंतिए सया । अट्ठजुत्ताणि सिखिज्जा, णिरट्ठाणि उवज्जए ॥ - उत्तराध्ययन सूत्र 1/8 पडिमा पडिवण्णस्स णं अणगारस्स कप्पंति चत्तारि भासाओ भासित्ताए, तंजहाजायणी, पुच्छणी, अणुण्णवणी, पुट्ठस्स वागरणी ॥ 22 चत्तारि भासा जाता पण्णता तंजहा - सच्चमेगं भासज्जायं, वीयं मोसं, तइयं, सच्चमोसं, चउत्थं असच्चमोसं । स्थानांगसूत्र 4/1/22, 23 गवेसणाए गहणेय, परिभोगेसणा य जा । आहारोवहि सेज्जाए, ए ए तिणि विसोहए । उत्तराध्ययन सूत्र 24/11 वयं च वित्तिं लब्भामो, ण य कोइ उवहम्मइ । अहागडेसुरीयंते, पुप्फेसु भमरा जहा ॥ दशवैकालिक सूत्र 1/4 उगमुप्पाणं पढ़ने, बीए सोहेज्ज एसणं । परिभोयम्मि चउक्कं, विसोहेज्ज जायं जई ॥ - उत्तराध्ययन सूत्र 24/12 मूलाचार - वट्टकेराचार्य, 6 अथ पिण्डशुद्धि अधिकार, गा० 422, 423, वट्टकेर मूलाचार, वट्टकेराचार्य, गा० 445, 446 मूलाचार, वट्टकेराचार्य, गा० 462 व्यवहार सूत्र उद्देशक 8/17, प्र० श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर आचारांग सूत्र, श्रु。स्कं० 2/10/7/369-370 दशवैकालिक सूत्र, 5/1/88, 92 पढ़ गहणं बीए धरणं पगयं तु दव्ववत्थेणं । एमेव होइ पायं भावे पायं तु गुणधारी । आवश्यक सू०, श्रु० स्क० 2, सू० 315 लाउयपायं वा दारुपायंवा मट्टियापायं वा । आचारांग सूत्र, श्रु० स्कं० 2/6/1/588 आचारांग सूत्र, द्वितीय श्रुत स्कंध, 11 /2 / 10, सुधर्मास्वामी - अनु० अमोलकऋषिजी प्रश्न व्याकरण सूत्र, श्रुतस्कन्ध, 2/3, 5 ओहोवहोवग्गहियं, भंडयं दुविहं मुणी । गिण्हतो णिक्खिवंतोय, पउंजेज्ज इमं विहिं ॥ 13 ॥ चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमज्जेज्ज जयं जई। आइए णिक्खिवेज्जावा, दुहओ वि समिए सया॥14॥ उ॰सू०, 24/13-14 उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाण - जल्लियं । आहारं उवहिं देहं, अण्णं वापि तहाविहं ॥ 30, 24/15 उत्तराध्ययन सूत्र, सुधर्मास्वामी अo 2 प्रारम्भ दिगिंछा परिगए देहे, तवस्सी भिक्खू थामवं । छिंदेण छिंदावए, ण पए ण पयवए ॥ उ०सू०, 2/2

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