Book Title: Jain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Author(s): Minakshi Daga
Publisher: Rajasthani Granthagar
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480 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया। उत्तराध्ययन सूत्र, सुधर्मास्वामी, 1/53 151. सीमान्तानां परतः स्थूलेतर, पंच पाप त्यागात्। देशावकाशिकेन च महाव्रतानि
प्रसाध्यन्ते । रत्नकरण्ड श्रावकाचार, आचार्य समन्तभद्र, 4/5, प्र. माणिकचन्द्र दि. जैन
ग्रंथमाला समिति। 152. देसावगासियस्स समणोवासएणं पंच अइयारा....., तंजहा-आणवणप्पओगे,
पेसवणप्पओगे, सद्दाणुवाए, रुवाणुवाए, बहिया पोग्गालपक्खेवे। उत्तराध्ययन सूत्र,
1/54, सुधर्मास्वामी 153. पोसहोवणसस्स पंच अइयारा....., तंजहा-अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहियसिज्जासंथारे,
अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जियसिज्जासंथारे, अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय उच्चार पासवणभूमि, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय उच्चार पासवणभूमि, पोसहोवचासस्स सम्म
अणणुपालणया। उ.द., 1/55, सुधर्मास्वामी 154. दानं वैयावृत्यं धर्माय तपोधनाय गुणनिधये। अनपेक्षितो पचारोपक्रियम गृहाय
विभवेन । रत्नकरण्ड श्रावकाचार, समन्तभद्रस्वामी, 4/21 155. अहासंविभागस्स पंच अइयारा....., तंजहा सचित्त निक्खेणया, सचित्तपेहणया,
कालाइक्कमे, परववएसे, मच्छरिया। उत्तराध्ययन सूत्र, 1/56, सुधर्मास्वामी 156. पंचणुव्वय धारित्तमण इयारं वएसु पडिबंधो। वयणा तदण इयारा वय पडिमा
सुप्पसिद्धन्ति ॥ प्रतिमाविंशतिका - हरिभद्रसूरि 10/5 157.i) समवायांग, 11/1 ___ii) एक्कारस उवासग पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा- 1 दंसण पडिमा, 2 वय पडिमा, 3
सामाइय पडिमा, 4 पोसह पडिमा, 5 काउसग्ग पडिमा, 6 बंभचेर पडिमा, 7 सचित्त परिण्णाय पडिमा, 8 आरंभ परिण्णाय पडिमा, 9 पेसपरिण्णाय पडिमा, 10
उद्दिट्ठभत्तपरिण्णाय पडिमा, 11 समणभूय पडिमा ॥ दशाश्रुतस्कंध, 6/1-2 158. श्रावक पदानि देवैरेकादश देशितानि येषु खलु। स्वगुणाः पूर्वगुणैः सहसंतिष्ठन्ते
क्रमविवृद्धाः । रत्नकरण्डश्रावकाचार, समन्तभद्र, 5/15 159. सम्यग्दर्शन शुद्धः संसार शरीर भोग निर्विण्णः। पंचगुरुचरणशरणो
दर्शनिकस्तत्वपथगृह्यः ।। रत्नकरण्डश्रावकाचार, समन्तभद्र, अ. 5/16 160. निरतिक्रमणमणुव्रतपञ्चकमपि शीलसप्तकं चापि। धारयते निः शल्यो योऽर्थी व्रतिना
मतो व्रतिकः ।। वही, 5/17 161. अहावरा चउत्था उवासग पडिमा...... सेणं सामयिमं देसावगासियं सम्मं अणुपालित्त
भवइ ।। दशाश्रुतस्कंध, 6/6 162. चतुरावर्त्तत्रितयश्चतुः प्रणामः स्थितो यथाजातः। सामायिको द्विनिषद्यस्त्रियोगशुद्ध
स्त्रिसन्ध्यमभिवन्दी ॥ रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 5/18 163. पर्वदिनेषु चतुर्ध्वपि मासे मासे स्वशक्तिमनि गुह्य। प्रोषधनियमविधायी प्रणधिपरः
प्रोषधानसनः ॥ वही, 5/19 164. अहावरा पंचमा उवासणपडिमा..... सेणं एगराइयं का उसग्ग पडिमं सम्मं अणुपालित्ता
भवइ॥

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