Book Title: Jain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Author(s): Minakshi Daga
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 501
________________ उपसंहार * 499 लगाई। अरिष्टनेमि ने मूक पशुओं की हिंसा को रोकने के लिए स्वयं के विवाह तक का त्याग कर दिया। दशवैकालिक में कहा है, सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविउं न मरिज्जिउं।' अर्थात् सभी जीव जीना चाहते है, मरना कोई नहीं चाहता। मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त करने के लिए दास प्रथा का भी घोर विरोध किया। जैन दर्शन में ही शूद्रों एवं स्त्रियों को भी सभी प्रकार के धार्मिक अधिकार दिए। उन्हें अपने संघ में दीक्षित किया बराबरी का स्थान दिया। जातिवाद का खण्डन करके यह उद्घोष किया, कि किसी जाति विशेष में जन्म लेने मात्र से ही व्यक्ति ऊँचा अथवा नीचा नहीं हो जाता है, वरन् व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है। जैन दर्शन ने मानवीय मूल्यों एवं आत्मिक सद्गुणों के विकास को अधिक महत्व दिया है। जैसा कि उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है, 'समताभाव धारण करने से कोई श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य पालन करने में ब्राह्मण होता है, ज्ञान की आराधना करने से मुनि होता है और तपस्या करने से तपस्वी होता है।' अर्थात् शूद्र कुल में जन्मा व्यक्ति भी ब्राह्मण के कर्म करके ब्राह्मण बन सकता है। जैन दर्शन के आद्यप्रणेता भगवान ऋषभदेव ने भी इसी आशय से जाति प्रथा प्रारम्भ की थी और भगवान महावीर ने भी यही उद्घोष बुलंद किया। जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादि धर्म, समाज व्यवस्था आदि युगों-युगों के बाद आज . भी उपयोगी और प्रासंगिक हैं। मानव सभ्यता के विकास क्रम में वैज्ञानिक युग के इस दौर ने भौतिक विकास की चरम सीमाओं को छू लिया है। मानव अन्तरिक्ष तक पहुँच गया है। विज्ञान ने ऐसी-ऐसी खोजें की हैं, कि मनुष्य एक स्थान पर बैठा-बैठा सारे विश्व को जान सकता है, कहीं से भी किसी से बात कर सकता है। बहुत कम समय में लम्बी दूरियाँ तय कर सकता है। लेकिन इस भौतिक उपकरणों के विकास ने मानव की क्षमताओं को कम कर दिया। व्यक्ति के आत्मविश्वास में कमी आ गयी। समय और स्थान की दूरी पर विजय पाकर भी मनुष्य अपने पारस्परिक सम्बन्धों में अधिक दूरी और तनाव महसूस करने लगा है। आज उसके चारों ओर विभिन्न प्रकार की समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं। विभिन्न आर्थिक और राजनैतिक चिन्तकों ने जो विचार दिए हैं, उससे लौकिक समृद्धि का क्षितिज तो विस्तृत हुआ है, लेकिन आत्मिक शांति संकुचित हो गयी। हिंसा, झूठ, चोरी, असंयम और परिग्रह की समस्या पहले से कहीं अधिक जटिल और सूक्ष्म बनी है। जीवन अधिक अशांत संत्रस्त और कुंठित हो गया है। ऐसी स्थिति में मनुष्य के जीवन में शांति, सुख और संतुष्टि लाने के लिए जैन दर्शन मार्ग प्रशस्त करता है। जैन धर्म के सिद्धान्तों को जीवन में, व्यवहार में अपनाने से जीवन स्वतः ही सहज, सरल एवं सुखमय हो जाएगा।

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