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456 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
हुए होने चाहिये, जबकि श्वेताम्बर इसे आवश्यक नहीं मानते। 9. दिगम्बर साधु एक ही घर में भिक्षा ग्रहण कर लेते हैं, जबकि श्वेताम्बर
साधु अनेक घरों से थोड़ा-थोड़ा ग्रहण करते हैं। 10. श्वेताम्बर मरुदेवी का हाथी पर चढ़े हुए ही मोक्षगामी होना मानते हैं,
जबकि दिगम्बर इसे स्वीकार नहीं करते। 11. दिगम्बर दीक्षा के समय तीर्थंकर के कन्धे पर देवदूष्य वस्त्र का होना
स्वीकार नहीं करते हैं, जबकि श्वेताम्बर ऐसा मानते हैं। 12. दिगम्बर नहीं मानते हैं, कि महावीर को तेजोलेश्या से उपसर्ग हुआ, __जबकि श्वेताम्बर ऐसा मानते हैं। 13. दिगम्बर मुनि शूद्र के घर से आहार नहीं लेते, जबकि श्वेताम्बर के लिए
ऐसा आवश्यक नहीं है। 14. दिगम्बर भरत चक्रवर्ती का अपने भवन में केवलज्ञान होना स्वीकार नहीं
करते हैं, किंतु श्वेताम्बर करते है। 15. दिगम्बर शूद्र मुक्ति और गृहस्थ वेश में मुक्ति को नहीं मानते, जबकि
श्वेताम्बर ऐसी कोई मान्यता नहीं रखते हैं। इस प्रकार दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय में उपर्युक्त मूलभूत धार्मिक मान्यताओं में मतभेद है। जैन दर्शन के बारे में दोनों सम्प्रदाय एक मत है। अनीश्वरवाद, आत्मवाद, कर्मवाद तथा निर्वाण ये जैन मत के प्रमुख सिद्धान्त हैं, जिनमें दोनों सम्प्रदाय पूर्ण रूप से विश्वास करते हैं।
जैन साधुओं की जीवनचर्या में दोनों सम्प्रदायों में महत्त्वपूर्ण अन्तर है। दिगम्बर साधु निर्वस्त्र अवस्था में रहते हैं, भोजन के लिए स्वयं श्रावक के घर जाकर भोजन ग्रहण करते हैं। खड़े-खड़े हाथों को पात्र बनाकर भोजन ग्रहण करते हैं, जमीन पर भोजन गिर जाने पर साधु आहार ग्रहण नहीं करते हैं। दिन में एक बार आहार ग्रहण करते हैं लेकिन श्वेताम्बर साधु श्वेत वस्त्र धारण करते हैं तथा भोजन श्रावक के घर से भिक्षा के रूप में लाकर अपने उपासरे में ग्रहण करते हैं। पात्रों का प्रयोग करते हैं। दोनों समय भी भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
___ भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् साधुओं की स्मृति के आधार पर ग्यारह अंगों का संकलन करके उन्हें व्यवस्थित किया गया। इन आगमों को दिगम्बर सम्प्रदाय नहीं मानता।
2. सागार धर्म ( श्रावक चर्या ) : सागार धर्म में गृहस्थ के पालन करने योग्य नियमों का निर्देश दिया गया है। यह जीवन की सरल एवं छोटी पगडण्डी है। गृहस्थ जीवन में परिवार, समाज तथा राष्ट्र का उत्तरदायित्व का भी निर्वाह करना होता है। अतः व्यक्ति अखण्ड सत्य, अहिंसा रूप साधु धर्म का पालन करने में असमर्थ होने के