Book Title: Jain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Author(s): Minakshi Daga
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 457
________________ नीति मीमांसा * 455 यह पता चलता है, कि विक्रम की दूसरी शताब्दी में विशाल जैन संघ स्पष्ट रूप से दो भागों में विभाजित हो गया था। जिसका मूल कारण साधुओं का परिधान था। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों को एक रूप से स्वीकार करते हैं, फिर भी बहुत सी मूलभूत बातों में उनका सिद्धान्त मतभेद हैं। दिगम्बर और श्वेताम्बर समुदायों में निम्न मुख्य बातों पर मतभेद हैं - 1. दिगम्बर सम्प्रदाय विश्वास करता है, कि एक साधु जो अपनी सम्पत्ति रखता है, वस्त्र पहनता है, वह मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता है। लेकिन श्वेताम्बर सम्प्रदाय मानता है, कि मोक्ष या मुक्ति की प्राप्ति के लिए पूर्ण नग्नता आवश्यक नहीं है। (अचेलकता का प्रसंग) 2. दिगम्बर सम्प्रदाय स्त्री मुक्ति का निषेध करता है, फलस्वरूप 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ का स्त्री होना स्वीकार नहीं करता। दूसरी तरफ श्वेताम्बर सम्प्रदाय यह मानता है, कि स्त्री को अपने जीवन में निर्वाण या मुक्ति प्राप्त हो सकती है। 3. तीसरा अन्तर आहार का है, दिगम्बर लोग पूर्णतः साधु की आर्हत अवस्था होने के बाद उनको केवली भगवान कहते हैं। अर्हत् अवस्था में साधु में अनन्तदर्शन, अनन्त ज्ञान प्रकट होता है। यह अवस्था प्राप्त होने पर वह किसी प्रकार की इन्द्रियों का उपभोग नहीं करते, उनका ज्ञान केवलज्ञान कहलाता है। दिगम्बर लोग यह मानते हैं, कि केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद आहार की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन श्वेताम्बर इस स्थिति के बाद भी आहार को आवश्यक मानते हैं। 4. दिगम्बर मानते हैं, कि महावीर का गर्भापहरण नहीं हुआ। वे यह नहीं मानते कि ब्राह्मण स्त्री देवानन्दा के गर्भ से निकाल कर क्षत्रिय स्त्री त्रिशला के गर्भ में महावीर के जीवन का आरोपण हुआ। लेकिन श्वेताम्बर इस तथ्य को मानते हैं। 5. दिगम्बर सम्प्रदाय मानता है, कि प्राचीन पवित्र जैन धर्म ग्रन्थ पूर्णतः समाप्त हो चुके हैं तथा श्वेताम्बर जैन विधान को अस्वीकर करता है। श्वेताम्बर 11 अंग स्वीकार करते हैं। 6. दिगम्बर मानते हैं, कि महावीर ने कभी विवाह नहीं किया था, लेकिन श्वेताम्बर कहते हैं, कि महावीर का विवाह यशोदा से हुआ था तथा उनकी एक पुत्री भी थी, जिसका नाम अन्नौजा या प्रियदर्शना था। 7. श्वेताम्बर मानते हैं, कि उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ स्त्री थे किंतु दिगम्बर उन्हें पुरुष मानते हैं। 8. दिगम्बर मानते हैं, कि तीर्थंकर नग्न, आभूषण रहित तथा आँखें नीचे किए

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