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360 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
कुछ मूर्त पदार्थ हों, वे सभी पुद्गल हैं ।
___ एक ही पुद्गल मौलिक है : पुद्गलों के अनेक प्रकार से भिन्न-भिन्न रूप में परिणमन होते रहते हैं। अतः पुद्गलों के अनन्तानन्त भेद हैं। तथापि सभी में मौलिक रूप से एक ही पुद्गल द्रव्य है। आधुनिक विज्ञान ने पहले 92 मौलिक तत्त्व (Elements) खोजे थे। उन्होंने इनके वजन और शक्ति के अंश निश्चित किए थे। मौलिक तत्त्व का अर्थ होता है - ‘एक तत्त्व का दूसरे रूप न होना।' परन्तु आगे शोधकार्य से अब एक एटम (Atom) ही मूल तत्त्व बच गया है। यही एटम अपने में चारों ओर गतिशील इलेक्ट्रोन और प्रोटोन की संख्या के भेद से ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, चाँदी, सोना, लोहा, ताँबा, यूरेनियम, रेडियम आदि अवस्थाओं को धारण कर लेता है। ऑक्सीजन के अमुक इलेक्ट्रोन या प्रोटोन को तोड़ने या मिलाने पर वही हाइड्रोजन बन जाता है। इस तरह ऑक्सीजन और हाइड्रोजन दो मौलिक न होकर एक तत्त्व की अवस्था विशेष ही सिद्ध होते हैं। मूलतत्त्व केवल (Atom) परमाणु है। यह मूल तत्त्व विज्ञान ने अब खोजा है, जिसे जैन दार्शनिकों ने सदियों पहले जान लिया था और एक ही मूल तत्त्व पुद्गल परमाणु का प्रतिपादन किया था।
पुद्गल के कार्य : पुद्गलों के विभिन्न प्रकार से परिणमन होते हैं, अतएव उनके कार्य भी अनेक प्रकार के हैं। यह सब शब्द, आकृति, प्रकाश, गर्मी, छाया, अन्धकार आदि का परिवहन तीव्र गतिशील पुद्गल स्कन्धों के द्वारा ही हो रहा है। परमाणु बम की विनाशक शक्ति और हाइड्रोजन बम की महाप्रलय शक्ति से हम पुद्गल परमाणु की अनन्त शक्तियों का कुछ अनुमान लगा सकते हैं।
एक दूसरे के साथ बँधना, सूक्ष्मता, स्थूलता, चौकोण, षट्कोण आदि विविध आकृतियाँ, सुहावनी चाँदनी, मंगलमय उषा की लाली आदि सभी कुछ पुद्गल स्कंधों की पर्यायें हैं। निरन्तर गतिशील और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक परिणमन वाले अनन्तानन्त परमाणुओं के परस्पर संयोग और विभाग से कुछ नैसर्गिक और कुछ प्रायोगिक परिणमन इस विश्व के रंगमंच पर प्रतिक्षण हो रहे हैं। यह सब कुछ माया या अविद्या नहीं है, ठोस सत्य है। स्वप्न की तरह काल्पनिक नहीं है। अपितु अपने में वास्तविक अस्तित्व रखने वाले पदार्थ हैं। विज्ञान ने एटम में जिन इलेक्ट्रोन और प्रोटोन को अविराम गति से चक्कर लगाते रखा है, वह सूक्ष्म या अतिसूक्ष्म पुद्गल स्कन्ध में बँधे हुए परमाणुओं का ही गतिचक्र है। सब अपने-अपने क्रम से जब जैसी कारण सामग्री पा लेते हैं, वैसा परिणमन करते हुए अपनी अनन्त यात्रा कर रहे हैं। मनुष्य की कितनी सी शक्ति! वह कहाँ तक इन परिणामों को प्रभावित कर सकता है। हाँ, जहाँ तक अपनी सूझबूझ और शक्ति के अनुसार वह यन्त्रों के द्वारा इन्हें प्रभावित
और नियन्त्रित कर सकता था, वहाँ तक उसने किया भी है। पुद्गल का नियन्त्रण पौद्गलिक साधनों से ही हो सकता है और वे साधन भी परिणमनशील हैं। अतः हमें