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तत्त्वमीमांसा 359
योग्य होता है।
स्कंध : एक से अधिक परमाणुओं के संयोग से स्कंध बनता है। दो परमाणुओं के मिलने से द्विप्रदेशी स्कन्ध, द्वयणुक, तीन परमाणुओं के मिलने से त्रिप्रदेशी स्कंध त्र्यणुक यावत् संख्यात् परमाणुओं के मिलने से संख्यात प्रदेशी स्कंध असंख्यात परमाणुओं के मिलने से असंख्यात प्रदेशी स्कंध और अनन्त परमाणुओं के मिलने से अनन्त प्रदेशी स्कंध बनता है । इन स्कन्धों में भेद होने से न्यूनता होती है और संयोग होने से वृद्धि होती है। इस प्रकार पुद्गलों में भेद और संघात होते रहते हैं । अतः पुद्गल द्रव्य के स्कन्ध अन्य द्रव्यों की तरह नियत रूप नहीं है।
पुद्गल तथा अन्य द्रव्यों में अन्तर यह है, कि पुद्गल के प्रदेश अपने स्कन्ध से पृथक् हो सकते हैं, लेकिन अन्य चार द्रव्यों के प्रदेश अपने-अपने स्कन्ध से अलग नहीं हो सकते क्योंकि पुद्गल के अतिरिक्त अन्य द्रव्य अमूर्त है। अमूर्त का स्वभाव खण्डित न होना है। पुद्गल द्रव्य मूर्त है । मूर्त के विभाग हो सकते हैं । संश्लेष द्वारा मिलने की तथा विश्लेष के द्वारा अलग होने की शक्ति मूर्त द्रव्य में होती है। इसी अन्तर के कारण पुद्गल स्कन्ध के छोटे-बड़े सभी अंशों को अवयव कहते हैं । अवयव अर्थात् अलग होने वाला अंश । तीनों लोकों की रचना जिन स्कन्धों से मिलकर हुई है, वे स्कंध परिणमन की अपेक्षा से छः प्रकार के बताए गए हैं?
1. अति बादर - बादर (स्थूल-स्थूल) : जो स्कंध दो खण्ड करने पर पुनः न मिल सकें, वे लकड़ी, पत्थर, पर्वत आदि अतिस्थूल-स्थूल हैं ।
2. बादर (स्थूल ) : जो स्कन्ध खण्डित होने पर भी अपने-आप मिल जावे, वे स्थूल स्कन्ध है, जैसे जल, दूध, घी आदि ।
3. बादर - सूक्ष्म : जो स्कन्ध दिखने में तो स्थूल हों, लेकिन छेदने भेदने और ग्रहण करने में न आवे, वे छाया, प्रकाश, अन्धकार, चाँदनी आदि बादरसूक्ष्म स्कंध हैं
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4. सूक्ष्म - बादर : जो चक्षुरिन्द्रिय से अग्राह्य होने से कारण सूक्ष्म किन्तु अन्य इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य हो । अर्थात् जो सूक्ष्म होने पर भी पंचेन्द्रिय द्वारा स्थूल रूप से अनुभव की जा सके, वे पाँचों इन्द्रियों के विषय स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण तथा शब्द सूक्ष्म-बादर स्कंध हैं ।
5. सूक्ष्म : जो सूक्ष्म होने के कारण इन्द्रियों से ग्रहण न किये जा सकें, वे कर्म वर्गणा आदि सूक्ष्म स्कन्ध हैं।
6. सूक्ष्म-सूक्ष्म : कर्म वर्गणा से भी छोटे द्वयणुक स्कन्ध तक पुद्गल द्रव्य सूक्ष्म-सूक्ष्म हैं।
जैन दर्शन के अनुसार वीतराग अतीन्द्रिय सुख के अनुभव से रहित जीवों की उपभोग्य पंचेन्द्रिय विषय, पाँच इन्द्रियाँ, पाँच शरीर, मन, अष्ट कर्म तथा अन्य भी जो