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444 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
होती है, उस समय साधु को इस प्रकार विचार करना चाहिये, कि इस आत्मा ने नरकादि दुर्गतियों में जो वेदना सही है, उसके सामने यह तृण जन्य वेदना तो कुछ नहीं है। अतः पीड़ा को समभाव से सहना चाहिये। दर्भादिजन्य घाव वाले जिनकल्पी मुनि वस्त्र-कम्बल आदि का सेवन नहीं
करते। 18. मैल परीषह : स्नान परित्याग रूप मर्यादा में रहने वाले मुनि ग्रीष्म ऋतु में
अथवा अन्य ऋतु में परिताप से होने वाले पसीने से अथवा मैल से या रज से शरीर लिप्त हो जाये तो भी सुख के लिए दीनता नहीं दिखावे। जीवन
पर्यंत स्नान का त्याग करके मैल परीषह को सहन करे। 19. सत्कार-पुरस्कार परीषह : जो साधु स्वतीर्थी या अन्यतीर्थी राजा आदि
द्वारा किये गये नमस्कार, सत्कार, सम्मान तथा भिक्षा के लिए निमंत्रण आदि का सेवन करते हैं, उनकी साधु चाहना नहीं करे और उनकी प्रशंसा भी नहीं करे। दूसरों का सत्कार, सम्मानादि उत्कर्ष देख कर ईर्ष्यालु भी
नहीं बने। 20. प्रज्ञा परीषह : साधु को ज्ञान का अभिमान नहीं करना चाहिये। ज्ञान का
अभिमान करने से किये हुए अज्ञान फल देने वाले कर्म उदय में आवेंगे, इस प्रकार कर्म-विपाक को जानकर अपनी आत्मा को आश्वासन देना
चाहिये और समभाव पूर्वक प्रज्ञा परीषह को सहन करना चाहिये। 21. अज्ञान परीषह : साधु को अवधि आदि प्रत्यक्ष ज्ञानों की प्राप्ति न होने पर
भी अपने मुनि धर्म अंगीकार करने पर आत्म ग्लानि नहीं होनी चाहिये, कि जो मैं अभी तक साक्षात् स्पष्ट रूप से कल्याणकारी, धर्म के स्वरूप को और पाप के स्वरूप को भी नहीं जान सका हूँ, तो फिर मेरा मैथुन आदि से निवृत्त होना और सम्यक् प्रकार से आश्रवों का निरोध करना व्यर्थ ही है। इस प्रकार साधु कभी विचार नहीं करे, अपितु ज्ञानावरणीय कर्म
का क्षय करने का प्रयत्न करे।" 22. दर्शन परीषह : साधु को सर्वज्ञ जिनदेव के द्वारा कहे गए वचनों को पूर्ण
श्रद्धा से मानना चाहिये, उनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। रागद्वेष को जीतने वाले सर्वज्ञ जिनदेव भूतकाल में हुए हैं, वर्तमान काल में महा विदेह क्षेत्र में सर्वज्ञ जिनदेव हैं तथा भविष्य में होंगे, इस प्रकार उन सर्वज्ञ जिनदेवों का अस्तित्व बताने वाले लोगों ने झूठ कहा है अथवा भूतभविष्यत्-वर्तमान काल के जिन देवों ने स्वर्ग आदि परलोक बताया है, वह झूठ कहा है -इस प्रकार साधु विचार नहीं करे और पूर्ण श्रद्धा से विपरीत परस्थितियों में भी धर्म में दृढ़ रहे । यही दर्शन परीपह है।