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नीति मीमांसा * 449
4. स्वाध्याय : ज्ञान प्राप्ति के लिए आगम आदि का विविध प्रकार से अध्ययन करना स्वाध्याय है। इसके पाँच भेद हैं अनुप्रेक्षा, 5. धर्मकथा ।°2
1. वाचना, 2. पृच्छना, 3. परिवर्तना, 4.
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1. वाचना : सूत्र या ग्रन्थ का अर्थ सहित पाठ करना वाचना है।
2. पृच्छना : शंका दूर करने के लिए अथवा विशेष निर्णय के लिए पूछना
पृच्छना है ।
3. परिवर्तना : पढ़े हुए पाठ की उच्चारण शुद्धि पूर्वक आवृत्ति करना परिवर्तना है ।
4. अनुप्रेक्षा: आगम पाठ या उसके अर्थ पर विशेष चिंतन करना अनुप्रेक्षा है ।
5. धर्म कथा : जानी हुई वस्तु का रहस्य समझना उदाहरण देकर व्याख्या करना या धर्मोपदेश देना धर्म कथा है ।
5. ध्यान : एक विषय में अन्तःकरण की वृत्ति को टिकाना - स्थापित करना ध्यान है। इसके चार भेद हैं। 1. आर्त ध्यान, 2. रौद्र ध्यान, 3. धर्म ध्यान, 4. शुक्ल ध्यान ।
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1. आर्तध्यान : दुःख से पीड़ित होने पर बराबर शोक, विलाप आदि करना, चिन्ताग्रस्त हो जाना आर्तध्यान है ।
2. रौद्र ध्यान : हिंसादि पापों को क्रियान्वित करने का विचार, क्रोध करना
ध्यान है।
3. धर्म ध्यान : धर्म के सम्बन्ध में विविध प्रकार से चिन्तन करना धर्म ध्यान है ।
4. शुक्ल ध्यान आठ प्रकार के कर्ममल से रहित आत्मा एवं आत्मा से सम्बन्धित ज्ञानादि गुणों, शक्तियों आदि का शुद्ध चिन्तन करना शुक्ल ध्यान है।
इन चारों में से प्रारम्भ के दो ध्यान संसार के कारण होने से हेय तथा अन्तिम दो मुक्ति के कारण होने से उपादेय हैं।
6. उत्सर्ग : बाह्य तथा आभ्यान्तर उपाधि (ग्रन्थि) का त्याग करना उत्सर्ग है। धन, धान्य, मकान, क्षेत्रादि वस्तुएँ बाह्य उपाधि है । तथा क्रोध, मान, माया, लोभ आदि मनोविकार आभ्यान्तर उपाधि है । 104
8. वर्षावास : वर्षाकाल में साधु की आचार संहिता का कल्पसूत्र में पृथक् से विवेचन किया गया है। जिस प्रकार भगवान् महावीर बीस रात्रि सहित एक मास व्यतीत होने पर अर्थात् आषाढ़ी चातुर्मासी से पचास दिन व्यतीत होने पर वर्षावास रहे। उसी प्रकार से श्रमणों को वर्षावास में रहना कल्पता है । इस समय से पूर्व भी