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ज्ञान मीमांसा (प्रमाण मीमांसा) 285
अर्थात् अनिश्चित। जैसे यह चन्दन का ही स्पर्श है, फूल का नहीं। इस प्रकार से स्पर्श को निश्चित रूप से जानने वाले उपर्युक्त चारों ज्ञान निश्चितग्राही अवग्राहादि कहलाते हैं । यह चन्दन का स्पर्श होगा या फूल का, क्योंकि दोनों शीतल होते हैं - इस प्रकार से विशेष की अनुपलब्धि के समय होने वाले संदेह युक्त चारों ज्ञान अनिश्चितग्राही अवग्रह आदि कहलाते हैं ।
दिगम्बर ग्रंथों में असंदिग्ध के स्थान पर 'अनुक्त' पाठ है । तद्नुसार उनमें अर्थ किया गया है, कि एक ही वर्ण निकलने पर पूर्ण अनुच्चरित शब्द को अभिप्राय मात्र से जान लेना, कि आप अमुक शब्द बोलने वाले हैं, अनुक्तावग्रह है । अथवा स्वर का संचारण करने से पहले ही वीणा आदि वादित्र की ध्वनिमात्र से जान लेना, कि आप अमुक स्वर निकालने वाले हैं, अनुक्तावग्रह है। इसके विपरीत उक्तावग्रह है। श्वेताम्बर ग्रन्थ नंदीसूत्र में असंदिग्ध ऐसा एकमात्र पाठ है । उसकी टीका में उसका अर्थ ऊपर लिखे अनुसार ही है ।" लेकिन तत्त्वार्थ भाष्य की वृत्ति में अनुक्त पाठ भी है। उसका अर्थ राजवार्तिक के अनुसार है । लेकिन वृत्तिकार ने लिखा है, कि अनुक्त पाठ रखने से इसका अर्थ केवल शब्द विषय अवग्रह आदि पर ही लागू होता है, स्पर्श विषय अवग्रह आदि पर नहीं। इस अपूर्णता के कारण अन्य आचार्यों ने असंदिग्ध पाठ ही रखा है।
11- 12. ध्रुवग्राही व अध्रुवग्राही : ध्रुव का अर्थ है, अवश्यंभावी और अध्रुव का अर्थ कदाचिद् भावी । यह देखा गया है, कि इन्द्रिय और विषय का सम्बन्ध तथा मनोयोग रूप सामग्री समान होने पर भी एक मनुष्य उस विषय को जान ही लेता है और दूसरा उसे कभी जान पाता है, कभी नहीं । सामग्री होने पर विषय को जानने वाले उक्त चारों ज्ञान ध्रुवग्राही अवग्रह आदि कहलाते हैं। सामग्री होने पर भी क्षयोपशम की मन्दता के कारण विषय को कभी ग्रहण करने वाले और कभी न ग्रहण करने वाले उक्त चारों ज्ञान अध्रुवग्राही अवग्रह आदि कहलाते हैं ।
उपर्युक्त बारह भेदों में से बहु, अल्प, बहुविध और एकविध से चार भेद विषय की विविधता पर अवलम्बित है, शेष आठ भेद क्षयोपशम की विविधता पर आधारित है । पाँच इन्द्रियाँ और मन इन छः भेदों के साथ अवग्रह आदि के चार - चार भेदों का गुणा करने से चौबीस और बहु, अल्प आदि उक्त बारह प्रकारों के साथ चौबीस का गुणा करने से दो सौ अट्ठासी (288) भेद हुए ।
सामान्यरूप से मतिज्ञान का विषय : उमास्वाति तत्त्वार्थ सूत्र में मतिज्ञान