________________
312 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
लोकोत्तर आगम के भेद एक अन्य प्रकार से भी किए गए हैं : आत्मागम, अनन्तरागम और परम्परागम।
अथवा प्रकारान्तर से लोकोत्तरिक आगम और तीन प्रकार का है - सूत्रागम, अर्थागम और तदुभयागम।
सूत्र और अर्थ की अपेक्षा से आगम विचार किया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है, कि तीर्थंकर अर्थ का उपदेश करते हैं, जबकि गणधर उसी आधार से सूत्र की रचना करते हैं। अतएव अर्थरूप आगम स्वयं तीर्थंकर के लिए आत्मागम है और सूत्ररूप आगम गणधरों के लिए आत्मागम है। अर्थ का मूल उपदेश तीर्थंकर का होने से गणधर के लिए वह आत्मागम नहीं, किन्तु गणधरों को ही साक्षात् लक्ष्य करके अर्थ का उपदेश दिया गया है। अतएव अर्थागम गणधर के लिए अनन्तरागम है। गणधर शिष्यों के लिए अर्थरूप आगम परम्परागम है, क्योंकि तीर्थंकर से गणधरों को प्राप्त हुआ और गणधरों से शिष्यों को। सूत्ररूप आगम गणधर शिष्यों के लिए अनन्तरागम है, क्योंकि सूत्रों का उपदेश गणधरों से साक्षात् उनको मिला है। गणधर शिष्यों के बाद में होने वाले आचार्यों के लिए सूत्र और अर्थ उभयरूप आगम परम्परागम ही है
आत्मागम अनन्तारागम परम्परागम तीर्थंकर
अर्थागम गणधर
सूत्रागम अर्थागम गणधर-शिष्य
सूत्रागम अर्थागम गणधर-प्रशिष्यादि
अर्थागम, सूत्रागम
(तदुभयागम) अनुयोगद्वार में विवेचित आगम प्रमाण को निम्नलिखित सारणी के द्वारा समझ सकते हैं -
आगम प्रमाण
X
X
xx
लौकिक आगम वेद, रामायण, महाभारत
लोकोत्तर आगम चतुर्दशपूर्व, द्वादशांग
सूत्रागम
अर्थागम
तदुभयागम
आत्मागम
अनन्तरागम परम्परागम आत्मागम
अनन्तरागम परम्परागम
आत्मागम
अनन्तरागम
परम्परागम