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तत्त्वमीमांसा 353
का समर्थन होता है। ऐसे जीव पाँच प्रकार के होते हैं ।"
1. पृथ्वीकाय : मिट्टी - कंकर आदि पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर का पिण्ड
है ।
2. जलकाय : जल भी जलकायिक जीवों के शरीर का पिण्ड है ।
3. अपकाय: अग्नि अग्निकायिक जीवों के शरीर का पिण्ड है ।
4. वायुकाय : वायु वायुकायिक जीवों के शरीर का पिण्ड है।
5. वनस्पतिकाय : वनस्पति, पेड़-पौधे, फल-फूल आदि सभी वनस्पति कायिक जीव हैं।
6. सकाय : द्विन्द्रिय, त्रिन्द्रिय चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय सभी जीव त्रस जीवों की श्रेणी में आते हैं। एकेन्द्रिय जीवों में केवल स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है।
1. द्विन्द्रिय जीव : द्विन्द्रिय जीव वे हैं, जिनके स्पर्शन एवं रसना दो इन्द्रियाँ होती हैं । जैसे, शंख, लट आदि ।
2. त्रीन्द्रिय जीव : त्रिन्द्रिय जीव वे हैं, जिनके स्पर्शन, रसना एवं घ्राण तीन इन्द्रियाँ होती हैं, जैसे चींटी आदि ।
3. चतुरिन्द्रिय जीव : चतुरिन्द्रिय जीव वे हैं, जिनके प्रथम चार इन्द्रियाँ स्पर्शन, रसना, घ्राण एवं चक्षु होते हैं । जैसे भौंरा आदि ।
4. पंचेन्द्रिय जीव : पंचेन्द्रिय जीव वे होते हैं, जिनके पाँचों इन्द्रियाँ स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु तथा श्रोत्र होती हैं। मनुष्य, सर्प, नेवला, पशु-पक्षी आदि सभी पंचेन्द्रिय जीव ही हैं।
इन्द्रियों के द्वारा सभी जीव अपने-अपने योग्य स्पर्श, रस, गंध, रूप शब्द आदि का ज्ञान करते हैं। इस प्रकार इन्द्रियों की अपेक्षा से जीवों के 5 भेद होते हैं तथा काय की अपेक्षा से 6 भेद होते हैं।
3. वेद : वेद की अपेक्षा से जीव तीन प्रकार के होते हैं । 1. स्त्री वेद, 2. पुरुष वेद तथा 3. नपुंसक वेद । ये तीनों वेद द्रव्य और भाव की अपेक्षा से दो-दो प्रकार के होते हैं। द्रव्य वेद से तात्पर्य लिंग के बाह्य चिन्ह से है तथा भाव वेद का तात्पर्य काम-भोग की अभिलाषा से है।
1. स्त्री वेद : स्त्री की पहिचान का साधन द्रव्य स्त्री वेद होता है तथा पुरुष के संसर्ग की अभिलाषा भाव - स्त्री वेद है ।
2. पुरुष वेद : जिस चिह्न से पुरुष की पहिचान होती है, वह द्रव्य पुरुष वेद है और स्त्री के संसर्ग सुख की अभिलाषा भाव - - पुरुषवेद है। 3. नपुंसक वेद : जिसमें कुछ स्त्री वेद तथा कुछ पुरुष वेद के चिह्न हों वह
द्रव्य नपुंसक वेद और स्त्री-पुरुष दोनों के संसर्ग की कामना भाव-नपुंसक