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266 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन हुआ, कि उसमें जैन आगम के मौलिक पंचज्ञानों को आधरभूत मानकर ही जैन दृष्टि से प्रमाणों का विचार किया गया है।
स्थानांग सूत्र में प्रमाणों के द्रव्यादि चार भेद जो किए गए हैं, उनका विवेचन पूर्व में हो चुका है। जैन व्याख्या पद्धति का विस्तार से वर्णन करने वाला ग्रन्थ अनुयोग द्वार सूत्र है। उसके अध्ययन से ज्ञात होता है, कि प्रमाण के द्रव्यादि चार भेद करने की प्रथा जैनों की व्याख्यापद्धति मूलक है। शब्द के व्याकरण को वादि प्रसिद्ध सभी संभावित अर्थों का समावेश करके, व्यापक अर्थ में अनुयोगद्वार के रचयिता ने प्रमाण शब्द प्रयुक्त किया है, जो अग्रसारीणी से ज्ञात हो जाता है -
अनुयोगद्वार
प्रमाण
उपक्रम
उपक्रम
निक्षेप
निक्षेप
अनुगम
नय
आनुपूर्वी
नाम
प्रमाण
वक्तव्यता अधिकार
समवतार"
नय
संख्या
जीवके
अजीवके
ज्ञान
दर्शन
चारित्र
प्रत्यक्ष
प्रत्यक्ष
अनुमान
अनुमान
औपम्य आगम
औपम्य
आगम
प्रत्यक्ष
इन्द्रिय प्रत्यक्ष
नौ इन्द्रिय प्रत्यक्ष
नौ इन्द्रिय प्रत्यक्ष
श्रोत्रेन्द्रिय प्र. चक्षुरिन्द्रिय प्र. घ्राणेन्द्रिय प्र. जिह्वेन्द्रिय प्र. स्पर्शेन्द्रिय प्र.
अवधिज्ञान प्रत्यक्ष
मनःपर्ययज्ञान प्र.
केवलज्ञान प्र.