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282 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
ईहा
धारणा
श्रोत्र
अवग्रह
इहा
है। श्रोत्र का शब्दोत्पत्ति के स्थान में पहुँचना तो नितान्त बाधित है।
मति ज्ञान का उत्पत्तिक्रम : मतिज्ञान के चार भेद हैं - अवग्रह, ईहा, अवाय व धारणा। उमास्वाति ने इस प्रकार से विवेचन किया है -
"अवग्रहेहावाय धारणा:।197 इन्द्रिय जन्य और मनोजन्य प्रत्येक मतिज्ञान के चार-चार भेद हैं। अतएव पाँच इन्द्रियों और एक मन इन छहों के अवग्रह आदि चार-चार भेद गिनाने से मतिज्ञान के चौबीस भेद होते हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - इन्द्रियाँ
मतिज्ञान के भेद 1. स्पर्शन अवग्रह
अवाय 2. रसना अवग्रह ईहा अवाय
धारणा घ्राण अवग्रह
अवाय धारणा अवग्रह
अवाय धारणा 5. चक्षु
अवाय धारणा मन अवग्रह
अवाय धारणा अवग्रह आदि चारों भेदों के लक्षण : 1. अवग्रह : इन्द्रियों द्वारा स्वविषयी पदार्थों का नाम, जाति आदि की विशेष
कल्पना से रहित सामान्य मात्र का ज्ञान अवग्रह है। जैसे-गहन अन्धकार में कुछ छू जाने पर यह ज्ञान होना, कि यह कुछ है। इस ज्ञान में यह नहीं मालूम होता कि किस, वस्तु का स्पर्श हुआ है, इसलिए वह अव्यक्त ज्ञान
अवग्रह है। 2. ईहा : अवग्रह के द्वारा ग्रहण किए हुए सामान्य विषय को विशेष रूप से
निश्चित करने के लिए, जो विचारणा होती है, वह ईहा है। जैसे - यह रस्सी का स्पर्श है या साँप का, यह संशय होने पर ऐसी विचारणा है, कि यह रस्सी का स्पर्श ही होना चाहिये, क्योंकि यदि साँप होता तो इतना सख्त आघात होने पर फुफकारे बिना नहीं रहता। यही विचारणा सम्भावना
या ईहा है। 3. अवाय : ईहा के द्वारा ग्रहण किये हुए विशेष का कुछ अधिक अवधान
(एकाग्रतापूर्वक निश्चय) अवाय है। जैसे कुछ काल तक सोचने और जाँच करने पर निश्चय ही जाना, कि यह साँप का स्पर्श नहीं, रस्सी का
ही है, इसे अवाय कहते हैं। 4. धारणा : अवाय रूप निश्चय छ काल तक कायम रहता है, फिर मन के
विषयान्तर में चले जाने से वह निश्चय लुप्त तो हो जाता है, पर ऐसा संस्कार छोड़ जाता है, कि आगे कभी योग्य निमित्त मिलने पर उस