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172 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
प्रति मानसिक वृत्ति का अत्यधिक राग अथवा द्वैषयुक्त हो जाना है । ये राग और द्वेष जब सन्तुलन की स्थिति को प्राप्त होते हैं, तभी व्यक्ति को परम सन्तोष उपलब्ध होता है और परम शान्ति मिलती है।
इच्छाएँ अनन्त हैं और पूर्ति के साधन अत्यल्प | अतएव समस्त इच्छाओं की पूर्ति तो असम्भव है। ऐसी स्थिति में अधिक तीव्र आवश्यकताओं की पूर्ति ही न्यायोपात्त धन से करनी चाहिये । अर्थशास्त्र का नियम है, कि सीमित साधनों को विभिन्न आवश्यकताओं पर इस प्रकार व्यय करना चाहिये, जिससे अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो सके । आवश्यकताओं की तीव्रता ही उनकी प्राथमिकता का निर्धारण करती है । सामान्यतः आवश्यकताओं को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है :
1. जीवन रक्षण आवश्यकताएँ ।
2. निपुणता रक्षक आवश्यकताएँ । 3. प्रतिष्ठा रक्षक आवश्यकताएँ ।
4. आराम सम्बन्धी आवश्यकताएँ ।
5. विलासिता सम्बन्धी आवश्यकताएँ ।
इस वर्गीकरण की प्रथम तीन आवश्यकताओं का अन्तर्भाव अनिवार्य आवश्यकताओं में किया जा सकता है।
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आर्थिक सिद्धान्तों के अनुसार धर्म आर्थिक प्रगति में बाधक माना गया है। किंतु जैन दर्शन में अर्थ के साथ धर्म का समन्वय करने का निर्देश दिया गया है। जो व्यक्ति ऐसा करता है, वह आर्थिक समृद्धि के साथ आध्यात्मिक समृद्धि को भी प्राप्त कर लेता है। धर्मबुद्धि पूर्वक इष्टार्थ की पूर्ति - कामनाओं की पूर्ति करनी चाहिये । कामनाओं की पूर्ति का साधन अर्थ है और अर्थार्जन के लिए श्रम एवं पूंजी का विनिमय करना आवश्यक है।
धनार्जन करने वाले के लिए संसार में कोई भी अकरणीय कार्य नहीं है। जो उत्पादन में लगा हुआ है, वह व्यक्ति अपने समस्त साधनों का उपयोग कर पूरी शक्ति के साथ धनार्जन करता है । उत्पादक का विवेक अर्थशास्त्र की दृष्टि से यही है, कि वह उत्पत्ति के साधनों का अधिकाधिक उपभोग कर धन उपार्जन करे, लेकिन संचय न करे। इस सिद्धान्त के अनुसार अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का संकेत प्राप्त होता है। इसमें सन्देह नहीं, कि लौकिक दृष्टि से आर्थिक समृद्धि अत्यधिक अपेक्षित है। जैन दर्शन में इस समृद्धि को सकलजन उपभोग्य बनाने के लिए अपरिग्रह एवं संयम के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है । धर्म वृक्ष फल अर्थ को ही माना गया है । इच्छाओं की पूर्ति उस फल का रस है ।
प्राचीन भारत में अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिए संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। संयुक्त परिवार में माता-पिता, पुत्र-पौत्र, भाई-बन्धु आदि अनेक सदस्य निवास करते थे। परिवार के सबल, निर्बल, योग्य, अयोग्य, बच्चे, बूढ़े सभी सदस्यों