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208 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
कषायों की प्रवृत्ति से मोहनीय कर्म बंधते हैं। इसी प्रकार हास्य, रति-अरति आदि तीव्र नोकषाय भी मोहनीय कर्म-बन्ध के कारण हैं।
5. आयुष्य कर्मबन्ध के कारण : तत्वार्थ सूत्र में कहा गया है- शील और व्रतों से रहित होना चारों प्रकार के आयुष्य का सामान्य बन्ध हेतु है। व्रत का अर्थ है- अहिंसा, सत्य आदि पाँच नियम तथा शील का अर्थ है- व्रतों की पुष्टि के लिए तीन गुणव्रत व चार शिक्षाव्रतों का पालन। इसके अतिरिक्त स्थानांग सूत्र व तत्वार्थ सूत्र दोनों में ही देवआयु, मनुष्य आयु, तिर्यंच आयु एवं नरकायु के बन्ध होने के पृथकपृथक कारणों का विवेचन किया है1. नरक आयु बन्ध के कारण- 1. महा आरम्भ, 2. महापरिग्रह, 3.
पंचेन्द्रियवध और मांसाहार इन चार कारणों से नरक आयु का बन्ध होता
है। 2. तिर्यंच आयु बन्ध के कारण- 1. माया करना, 2. गूढ माया करना, 3.
असत्यवचन बोलना तथा 4. कूट माप तोल करना आदि कारणों से जीव तिर्यंच आयु का बन्ध करता है। 3. मनुष्य आयु बन्ध के कारण- 1. सरल प्रकृति होना 2. प्रकृति विनीत होना
3. दया के परिणाम 4. ईर्ष्या न करना आदि कारणों से मनुष्य आयु का
बन्ध होता है। 4. देव आयु बन्ध के कारण- देव आयु का बन्ध भी चार कारणों से होता है1. सराग संयम : साधु द्वारा राग युक्त संयम का पालन करना। 2. संयमा संयम : श्रावक चर्या का पालन करना संयम और असंयम की
मिश्रित अवस्था 3. बाल तपस्या : अज्ञानी या मिथ्यात्वी की तपस्या। 4. अकाम निर्जरा तप : मोक्ष की इच्छा के बिना की जाने वाली तपस्या।
6. नाम कर्म बन्ध के कारण : नाम कर्म बन्ध शुभ तथा अशुभ रुप से दो प्रकार से होता है। दोनों का बन्ध चार-चार कारणों से होता है -
शुभ नाम कर्म बन्ध के कारण : 1. काया की सरलता : शरीर के द्वारा कोई कपट पूर्ण प्रवृत्ति न करना। 2. भाव की सरलता : मनोभावों को छल-कपट से दूर रखना। 3. भाषा की सरलता : बोलते समय कपट का आश्रय न लेना। 4. अविसंवादन योग : मन-वचन -काया के व्यापारों में एकरुपता होना।
उपर्युक्त कारणों से शुभ नाम कर्म का बन्ध होता है। इसके विपरीत काया, भाव व भाषा की कुटिलता से तथा विसंवादन योग से अशुभ नाम कर्म का बन्ध होता है।
तीर्थंकर नाम कर्म बन्ध के कारण : तीर्थंकर नामकर्म बन्ध के 20 कारण