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सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 175
सकते हैं।
इस प्रकार सुन्दरवेशभूषा, अलंकृत परिधान एवं गजाश्वादि वाहन आर्थिक सन्तुलन के परिचायक हैं। धन को मानव कल्याण का साधन माना गया है। कल्याण से सुख, आनन्द और सन्तुष्टि का बोध होता है। जिसका अनुभव मनुष्य को किसी वस्तु की प्राप्ति के बाद अथवा उसके उपभोग के अनन्तर मन और मस्तिष्क में होता है। धन से प्राप्त सुख अलौकिक या आध्यात्मिक नहीं है। इसको हम भौतिक सुख (Material Pleasure) अथवा कल्याण कह सकते हैं। समाज कल्याण की दृष्टि से धन को आवश्यक माना गया है।
संदर्भ सूची:
प्रजानां जीवनोपायमनान्मनवो मताः। आर्याणां कुलसंस्त्यायकृतेः कुलकरा इमे कुलानां धारणादेते मताः कुलधरा इति । युगादि पुरुषाः प्रोक्तायुगादौ प्रभाविष्णवः॥ - आदिपुराण, 3/211-212 आदिपुराण, 3/223-237 आदिपुराण,16/186 वही, 38/45 वही,38/46-47
आदिपुराण,38/43 7. तत्त्राणे नियुक्तानां वृतं वः पञ्चद्योदितम्। तच्चेदं कुलमत्यात्म प्रजानामनुपालनम्।
समञ्जसत्वं चेत्यवमुद्दिष्टं पञ्चभेदभाक् ॥ वही, 42/3-4 आदिपुराण पर्व, 16/184-186 डॉ॰ नेमिचन्द शास्त्री-आदिपुराण में भारत, प्र. श्री गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला, 1/128
डुमराव बाग, अस्सी, वाराणसी - 5, पृ0 150 10. आदिपुराण, 38/104-112
आदिपुराण,38/117-120 12. वही,38/122 13. तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका, अ.7, सूत्र 28, वार्तिक। 14. युक्तितो वरणविधानभग्निदेवद्विजसाक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः। - नीति वाक्यामृत,
विवाह समुद्देश, सूत्र 3 15. आदिपुराण, 26/4 16. वही, 15/164 17. वही, 17/181 18. आदिपुराण, 2/31,32,33 19. वही,2/34,35,36,37 20. आदिपुराण, 16/98 21. वही,16/103-104
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