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सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव 169
अर्धमण्डलेश्वर के अधीन एक हजार राजा रहते थे और इसका वैभव मण्डलेश्वर की अपेक्षा आधा होता था ।
महामाण्डलिक-चार हजार राजा इसकी अधीनता स्वीकार करते थे । अधिराज की अधीनता में पाँच सौ राजा रहते थे । भूपाल का राज्य नृपति की अपेक्षा विस्तृत होता था। हाथी, घोड़े, रथ और पदाति इसके पास रहते थे ।
नृपति (राजा) सामान्य राजा होता था । प्रत्येक जनपद में एक नृपति या राजा
रहता था ।
आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के काल में उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती संप्रभुता संपन्न सम्राट हुए थे। वह प्रजा को सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए प्रयत्नशील थे। उनके राज्य में अकृष्ट पच्या खेती होती थी । प्रजा सभी प्रकार से सुखी एवं सम्पन्न थी । पर जब चक्रवर्ती के समक्ष कोई समस्या उपस्थित होती, तो वह उस समस्या का समाधान प्राप्त करने के लिए उस समय के धर्म नेता आदितीर्थंकर की धर्म सभा में पहुँचता था और वहाँ अपनी समस्या का समाधान प्राप्त करता था। इस समाधान द्वारा ही वह राज कार्य में प्रवृत होता था । अतएव यह स्पष्ट है, कि प्रभुता सम्पन्न नृपति को भी अपनी सहायता के लिए एक धर्मनेता की आवश्यकता थी । धर्म नेता का स्थान राजनैतिक नेता से ऊँचा होता था तथा धर्म नेता ही वास्तव में लोकनेता का पथ प्रदर्शन करता था । यदि राजनैतिक नेता निरंकुश हो जाय और धर्मनेता का सम्बल उसे प्राप्त न हो, तो राज्य की व्यवस्था अच्छी नहीं हो सकती ।
राजनैतिक व्यवस्था : राजा को शक्तिशाली होना चाहिये । शक्ति के तीन भेद बताए गए हैं। मन्त्रशक्ति को ज्ञानबल, प्रभुशक्ति को कोश और सेनाबल एवं उत्साहशक्ति को विक्रम बल कहते हैं । इन शक्तियों से युक्त राजा श्रेष्ठ होता है । राजा को सदैव अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिये । सैन्यशक्ति राज्य की सात प्रकृतियों में से एक है। सेना छः प्रकार की बतायी गयी है ।
अपने राज्य विस्तार और प्रजा पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए चार उपायों का आश्रय लेना पड़ता है । इन चार उपायों में साम सर्वोत्तम, भेद मध्यम, दाम अधम और दण्ड कष्टतम है। बिना द्रव्य की हानि के उपाय रहित कार्य के सिद्ध हो जाने के कारण साम अत्यन्त उत्तम माना गया है। कुलीनों, कृतज्ञों, उदार चरित्रवालों एवं मेधावियों के साथ साम का व्यवहार करना चाहिये । साम का अर्थ है, वचन चातुर्य से अपने में वश करना। तुम्हारे समान मेरा कोई मित्र नहीं, यह मित्र विषयक साम है। हमें और तुम्हें मिलकर शत्रु का सामना करना है, एक दूसरे की सहायता करनी है, यह शत्रुविषयक साम है।
जो शत्रु साम उपाय के द्वारा वश न हो उसे भेद द्वारा वश में करना चाहिये । भेद का अर्थ है, शत्रु को किसी अन्य शत्रु से लड़ाकर उसकी शक्ति क्षीण कर देना । साम में