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158 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
12. पुराण - आख्यानात्मक धार्मिक ग्रन्थ। 13. मीमांसा - विधि या क्रिया प्रतिपादक शास्त्र। 14. न्याय शास्त्र - द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य आदि सात पदार्थों का ज्ञान। पाठ्यक्रम के अन्य विषय : 1. काम नीति - कामशास्त्र का ज्ञान। 2. हस्तितन्त्र - गजशास्त्र, गज संचालन एवं मदोन्मत गज का वशीकरण। 3. अश्वतन्त्र - अश्वशास्त्र। 4. आयुर्वेद - चिकित्साशास्त्र और रोग विज्ञान। 5. निमित्त शास्त्र - निमित्तों द्वारा शुभाशुभ का ज्ञान। 6. शकुन शास्त्र - विभिन्न प्रकार के शकुनों द्वारा शुभाशुभ प्रतिपादक शास्त्र । 7. तन्त्र शास्त्र। 8. मन्त्र शास्त्र - मन्यते ज्ञायते आत्मादेशोऽतेन इति मन्त्रः-मन्+ष्ट्रन। 9. पुरुषलक्षणशास्त्र। 10. कलाशास्त्र - विविध कलाओं का प्रतिपादक शास्त्र। 11. राजनीति विज्ञान शास्त्र। 12. धर्मशास्त्र - क्रियाकाण्ड, विश्वास एवं परम्पराओं का बोधक शास्त्र।
गृह विरक्त मुनियों, क्षुल्लकों और ऐलकों के लिए लौकिक शिक्षा के अतिरिक्त पारलौकिक शिक्षा का भी प्रबन्ध था। जिनसेनाचार्य ने स्वाध्याय के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए बतलाया है - स्वाध्याय करने से मन का निरोध होता है, मन का निरोध होने से इन्द्रियों का निग्रह होता है। अतः स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति स्वतः संयमी और जितेन्द्रिय बन जाता है।" 1. पुराण : पुरातन पुराणम्। प्राचीन होने से पुराण कहा जाता है। महापुरुषों
के उदात्त चरित्र का निरुपण करना ही पुराण का लक्ष्य है। पुराण के दो भेद हैं- पुराण और महापुराण। जिसमें एक शलाका पुरुष का चरित्र वर्णित रहता है, वह पुराण है और जिसमें त्रैसठ शलाका पुरुषों का चरित्र वर्णित रहता है, वह महापुराण कहलाता है। धर्म तत्त्व का निरुपण करने के कारण पुराण धर्मशास्त्र भी कहलाता है। जो पुराण का अर्थ है, वह धर्म है, यह पुराण पाँच प्रकार का है - क्षेत्र, काल, तीर्थ, सत्पुरुष और सत्पुरुष
का चरित्र। 2. व्याकरण : व्याकरण शब्द की व्यत्पत्ति - "व्याक्रियन्ते व्युत्पाद्यन्ते
साध्यन्ते शब्दाः अनेन" अर्थात् जिसके द्वारा शब्दों की व्युत्पत्ति बतलायी जाय, वह व्याकरण शास्त्र है। व्याकरण का उद्देश्य भाषा का विश्लेषण करना है। सूत्र, वृत्ति, प्रक्रिया और उदाहरणों द्वारा शब्दों का बोध करना