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सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 131
तीर्थंकर की ऐसी उपदेश सभा है, जिसमें पशु-पक्षी, देव-मनुष्य, उच्च-नीच, धनीगरीब, मित्र-अमित्र, पापी-पुण्यात्मा सभी एक साथ बैठ आत्मकल्याणकारी उपदेश सुनते हैं। समवशरण ऐसी सामाजिक संस्था है, जिसकी शरण में सभी प्रकार के लौकिक नेता पहुँचते हैं। वास्तव में धर्मनेता ऐसा लोकनायक होता है, जो निःस्वार्थ
और निष्काम भावना से जनहित का उपदेश देता है। शील, संयम, सदाचार, व्यवस्था, मानमर्यादा एवं सहयोग सेवा की भावना ही सामाजिकता का निर्वाह करने में समर्थ होती है। उच्च आदर्शों की स्थापना एवं वैयक्तिक जीवन में विकार-संशोधन भी इसी प्रकार की संस्थाओं द्वारा संभव है।
समवशरण में प्रसारित होने वाली दिव्यध्वनि व्यक्ति के व्यक्तित्व का उत्थान करती है, उसे मानवोचित गुणों से परिचित कराती है और समाज का सहयोगी सिद्ध करती है। आत्मप्रशंसा और परनिन्दा ऐसी दुष्प्रवृत्तियाँ हैं, जिनके कारण समाज की शान्ति और व्यवस्था टूटती है तथा पारस्परिक संघर्ष उत्पन्न होता है, अतः समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से कोई भी विचारक नेता मानव की मूल प्रवृत्तियों में सामंजस्य उत्पन्न करता है, संवेग और इच्छाओं को नियंत्रित करता है और स्वस्थ सामाजिक अर्हाओं को प्रादुर्भूत करता है। शत्रुता, शोक, ईर्ष्या, राग, द्वेष, असंयम आदि ऐसे कीटाणु हैं, जो समाज को शनैः-शनैः क्षीण करते जाते हैं, जिससे अन्त में समाज रूपी वृक्ष धराशायी हो जाता है। वस्तुतः यह संस्था मानव मात्र को धर्मसाधना का समान अधिकार प्रदान करती है, प्रत्येक व्यक्ति समत्व को प्राप्त होता है।
समवशरण संस्था धार्मिक संस्था होने पर भी इसमें सामाजिक संस्था के गुण भी पाये जाते हैं। सामाजिक दर्शन (Social Philosophy) और सामाजिक नियोजन (Social Planning) ये दोनों गुण इस संस्था में समाहित हैं। संक्षेप में इस संस्था में निम्नलिखित समाजशास्त्रीय गुण-महत्त्व प्रकट होते हैं -- . 1. धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में मनुष्य मात्र के समान अधिकार की घोषणा
करना। 2. सद्गुणों के विकास का सभी को समान अवसर प्राप्त करने की स्वतन्त्रता
का रहना। 3. विरोधी विचारों को सुनकर घबड़ाना नहीं अपने विचारों के समान अन्य
के विचारों का भी आदर करना। 4. संचयशील वृत्ति का त्याग कर अधिकार लिप्सा और प्रभुत्ववृद्धि की
भावना का दमन करना। 5. निर्भय और निर्वैर होकर शान्ति के साथ जीना और दूसरों को जीवित रहने
देना। 6. दूसरों के अधिकार और अपने कर्त्तव्यपालन के लिए सदा जागरूक रहना।