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सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव 137
द्रविड़ों में जाति व्यवस्था थी । यह जाति व्यवस्था भिन्न-भिन्न उद्योगों के कारण प्रारम्भ हुई।
6. श्रम विभाजन की व्यवस्था : आर्थिक जीवन के विकास के लिए श्रम विभाजन परमावश्यक है । उद्योग-धन्धों का विकास भी श्रमचातुर्य से ही होता है।
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7. शिक्षा व्यवस्था : जाति या धर्म विशेष के आधार पर शिक्षादान में प्रगति देखी जाती है। किसी जाति विशेष के व्यक्ति अपनी जाति के सुधार या कल्याणार्थ शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करते हैं ।
8. विवाह सम्बन्ध की व्यवस्था : जाति व्यवस्था ने विवाह सम्बन्धों के सम्पादन में सौकर्य प्रदान किया है। वर्ग विशेष के बीच में सहयोग, संघर्ष, स्पर्धा आदि के अवसर अधिक प्राप्त होते हैं । अतः विवाह या अन्य प्रकार के सम्बन्ध - निर्वाह जाति व्यवस्था के कारण सरल हो जाते हैं।
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9. समानता : जाति व्यवस्था रक्तशुद्धि में सहायक होती है। यह जाति व्यवस्था धार्मिक और सामाजिक संस्था के रूप में है। इसने दीक्षा, व्रत एवं आत्मोत्थान के लिए सीमाएँ निर्धारित की तो सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था के लिए भी प्रयास किया। इस मान्यता से धनिक, शिक्षित, दरिद्र, मूर्ख आदि समस्त सदस्यों को समान सामाजिक वातावरण उपलब्ध होता है।
इस प्रकार जाति व्यवस्था लौकिक उत्थान की दृष्टि से पर्याप्त उपादेय है। किंतु पारलौकिक दृष्टि से व्यक्ति को वर्णानुसार धर्माधिकारी मानना अनुचित हैं, जो कि कालान्तर में प्रचलित हो गया। ऋषभदेवजी द्वारा प्रतिपादित वर्ण-व्यवस्था कर्मानुसार थी और कर्मानुसार ही व्यक्ति धर्माधिकारी एवं मोक्ष का अधिकारी था । जाति व्यवस्था पैतृक होने के पश्चात् उच्चवर्गों ने शूद्रों को धर्म एवं मोक्ष का अधिकारी मानने से इन्कार कर दिया। जैन दर्शन में अब भी उपस्कार शुद्धि, आचार शुद्धि और शरीर शुद्धि के होने पर शूद्र वर्ण को भी धर्म एवं मोक्ष मार्ग का समान अधिकारी स्वीकार किया
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5. आश्रम संस्था : जीवन के मर्म को जानने के लिए आश्रम संस्था की व्यवस्था की गयी हैं । जीवन विकास को चार भागों में बाँटकर ही आश्रम के रूप में व्यवस्थित किया है। 1. ब्रह्मचर्य, 2. गृहस्थ, 3. वानप्रस्थ एवं 4. सन्यास । ये चार आश्रम जीवन के विरामस्थल उत्तरोत्तर अधिक विशुद्धि प्राप्त होने से प्रतिपादित किये गये हैं ।
1. ब्रह्मचर्य : ब्रह्मचर्य आश्रम में मुख्यतः ज्ञान की उपासना की जाती है । आठ वर्ष की अवस्था में बालक को जिनालय में ले जाकर अर्हन्तदेव की पूजा, भक्ति