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सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 149
जीवन विधि क्या है? उनका खान-पान, रहन-सहन, व्यापार-कामकाज, दिनचर्या क्या है? अन्य जीवों के प्रति उनका दष्टिकोण क्या है? जीवन के विकार भाव व प्रदूषण वे किसे मानते हैं? उनके पर्व त्यौहार क्या हैं? जैन संस्कृति का जीवन दर्शन क्या है?
जैन संस्कृति जैन धर्म से अनुपूरित जीवन शैली है। जैन दर्शन, साहित्य, जैन कला, वास्तुकला, मूर्तिकला आदि जैन परम्पराएँ व मूल्य, जैन त्यौहार व पर्व भी जैन संस्कृति के ही घटक हैं।
जैन संस्कृति = जैन धर्म + जैन दर्शन + जैन सिद्धांत + आत्म विद्या।
जिन देव द्वारा उपदिष्ट मार्ग ही जैन धर्म और उस मार्ग की अनुपालना करने वाले जैन हैं। वह मार्ग है - 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ॥
श्रमण संस्कृति का तात्पर्य है, जो श्रम करता है, तपस्या करता है, अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करता है, वह ही श्रमण है।
"श्राम्यन्तीति श्रमणाः तपस्यन्ते इत्यर्थः।" अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करने वाले तथा पुरुषार्थ द्वारा आत्मसिद्धि करने वाले क्षत्रिय होते हैं। अतः कह सकते हैं, कि श्रमण संस्कृति पुरुषार्थ मूलक क्षत्रिय संस्कृति है।
“सन्तुष्टा, करवणा मैत्रा शान्ता: दान्ता स्तितिक्षवः। आत्मारामाः समदृश: प्रायशः श्रमणा जनाः॥"
__ - भागवत स्कन्ध-12, अध्याय-3, श्लोक-9 अर्थात् सतयुग में श्रमण संतुष्ट, करुणाशील, मैत्री परायण, शान्त, इन्द्रियजयी, सहनशील, आत्मा में रहने वाले और समदृष्टि वाले होते हैं। ऐसा शुकदेव ने परीक्षित से कहा।
जैन धर्म को सरल शब्दों में परिभाषित करते हुए खूबचन्दजी जैन लिखते हैं
“Jainism is the only man made religion that reduces everything to the iron laws of nature and agrees with modern science. It is perfectly true when the Jains say that the religion originated with man and that the first defied man of every cycle of time is the founder of religion whenever a Tirthankara arises, he reestablishers the scientific truth considering the nature of life and these truths are collectively termed religion on the present cycle of time. The religion was first preached by Tirthankar Rishabh. ‘Religion it would be known, is a way of life which is not invented, it is rediscovered and this was what Tirthankar did. They explained the laws of nature that governs the Universe command and his conduct.***