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130 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
कुलकर संस्था द्वारा सामान्यतः निम्नलिखित कार्यों का सम्पादन हुआ है -
1. समाज के सदस्यों के बीच सम्बन्धों का संस्थापन। 2. सम्बन्धों की अवहेलना करने वालों के लिए दण्ड व्यवस्था का निर्धारण। 3. स्वाभाविक व्यवहारों के सम्पादनार्थ कार्य-प्रणाली का प्रतिपादन। 4. आजीविका, रीति-रिवाज एवं सामाजिक अर्हाओं की प्राप्ति की व्याख्या
का निरूपण। 5. सांस्कृतिक उपकरणों द्वारा स्वस्थ वैयक्तिक जीवन निर्माण के साथ
सामाजिक जीवन में शान्ति और सन्तुलन स्थापनार्थ विषय सुख की
अवधारणाओं में परिमार्जन। 6. समाज संगठन एवं विभिन्न प्रवृत्तियों का स्थापन। 7. सामूहिक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं समाज-हित प्रतिपादन। 8. आदिपुराण में आचार्य जिनसेन ने लिखा है, कि जीवन वृत्ति एवं मनुष्यों
को कुल की तरह इकटे रहने का उपदेश देने के कारण ये कुलकर कहलाये।' कुलकरों के कार्यों का वर्णन करते हुए बताया गया है. कि प्रतिश्रुत ने कर्मभूमि के प्रारम्भ में चन्द्रमा के देखने से भयभीत हुए मनुष्य के भय को दूर किया। तारागणों से युक्त नभमण्डल को देखकर भयभीत हुए मनुष्यों के भय को सन्मति ने दूर किया। क्षेमंकर ने प्रजाक्षेम-कल्याण
और सुव्यवस्था का प्रचार किया। क्षेमंधर ने कल्याणकारी कार्यों का उपदेश दिया। सीमंकर ने आर्य पुरुषों की सीमाएँ नियत की। सीमन्धर ने सम्पत्ति का बँटवारा करना बतलाया तथा कल्पवृक्षों की सीमा निश्चित की। विमलवाहन ने गज, अश्व, रथ आदि वाहनों पर सवारी करना सिखलाया। चक्षु ध्यान ने पुत्र पालन की परम्परा बतलायी, अभिचन्द्र ने बालकों को क्रीड़ा-विनोद करना और मरुदेवी ने पारिवारिक सम्बन्धों की स्थापना करना सिखलाया। प्रसेनजीत ने गर्भ के ऊपर रहने वाले जरायु के हटाने का कार्य और नाभिराज ने नाल काटने का कार्य सिखलाया। ऋषभदेव ने समाज को कृषि करना, वाणिज्य व्यवसाय करना, नौकरी करना, शिल्पकार्य सम्पादन करना, कला कौशल का निर्माण करना सिखलाया। समाज व्यवस्था में इनका बहुत बड़ा योगदान है। ग्राम, नगर, नदी, सरोवर आदि के उपयोग करने की प्रक्रिया भी इन्होंने बतलायी थी। इस प्रकार कुलकरों
ने समाज व्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 2. समवशरण-संस्था : समवशरण ऐसी संस्था है, जो समाज को स्वस्थ और प्रबुद्ध बनाने के साथ कर्तव्य दायित्व का विवेक सिखलाती है। जैन धर्म के प्रतिपादक तीर्थंकरों को जब केवलज्ञान हो जाता है, तो समवशरण की रचना होती है। समवशरण