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132 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
7. अहिंसा और संयम के समन्वय द्वारा अपनी विशाल और उदार दृष्टि से विश्व में भ्रातृत्व भावना का प्रचार करना ।
3. चतुर्विध संघ-संस्था : चतुर्विध संघ में श्रमण, श्रमणी श्रावक और श्राविका इन चारों के समवाय की गणना की जाती है। इन्हें दो संस्थाओं में विभक्त कर सकते हैं 1. साधु संस्था, 2. गृहस्थ संस्था ।
साधु संस्था : साधु-संस्था के अपने संहिता नियम हैं, जिनके आधार पर इस संस्था का संचालन होता है । इस संस्था का नायक 'आचार्य' कहलाता है, जिसके तत्त्वावधान में साधु अपने नियमों का पालन करते हैं । प्रत्येक साधु के संहिता नियम थे, जिनका पालन वे कठोरतापूर्वक करते थे । यह संस्था मुनि, उपाध्याय, क्षुल्लकऐलक और क्षुल्लिकाएँ एवं आर्यिकाएँ इन चार रूपों में विभक्त थी । आचार्य की अनुज्ञा के बिना कोई भी साधु अकेला विहार नहीं करता था । प्रायश्चित, स्वाध्याय, विनय, वैयावृत्य और ध्यान की ओर साधुवर्ग का ध्यान विशेष रूप से दिलाया जाता था, क्योंकि इन नियमों का समाजशास्त्र के साथ गहरा सम्बन्ध है । प्रायश्चित आत्मशुद्धि और समाजशुद्धि का कारण है। आचरण में किसी भूल या त्रुटि हो जाने पर उसके सुधार के लिए गुरु के समक्ष उसे निवेदित करना और उसके लिए उचित दण्ड ग्रहण करना प्रयश्चित है । इससे साधु समाज में कोई दोष नहीं आ पाता, वह संयमी बना रहता है।
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स्वाध्याय स्व और पर की अनुभूति एवं शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक है । स्वाध्याय से ही तत्त्वों तथा अधिगम के उपायों को जाना जा सकता है। अधिगम उपायों में प्रमाण, नय और निक्षेप माने गये हैं। प्रमाण वस्तु के पूर्ण रूप को ग्रहण करता है और नय प्रमाण द्वारा गृहित वस्तु के एक अंश को जानता है । आशय यह है, कि ज्ञाता का अभिप्राय विशेष नय है, जो प्रमाण के द्वारा जानी गयी वस्तु के एक अंश का स्पर्श करता है । प्रमाण ज्ञान अनन्त धर्मात्मक वस्तु को समग्र भाव से ग्रहण करता है, अंश विभाजन करने की ओर उसकी प्रवृत्ति नहीं होती ।
अनन्तधर्मात्मक पदार्थ के व्यवहार में निक्षेप की आवश्यकता है । जगत् में व्यवहार तीन प्रकार से चलते हैं - ज्ञान, शब्द और अर्थ द्वारा । अनन्त धर्मात्मक वस्तु को उपर्युक्त तीनों व्यवहारों में बाँटना निक्षेप है । निक्षेप का शाब्दिक अर्थ है - रखना । वस्तु के विवक्षित अंश को समझने के लिए उसकी शाब्दिक, आर्थिक, सांकल्पिक, आरोपित, भूत, भविष्य, वर्तमान आदि अवस्थाओं को सामने रखकर प्रस्तुति की ओर दृष्टि देना निक्षेप का लक्ष्य है। जैनागम में पदार्थ वर्णन की एक पद्धति है, कि एकएक शब्द को नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव, काल और क्षेत्र की दृष्टि से विश्लेषण कर वस्तु का विवेचन करना और तदन्तर विवक्षित अर्थ को बतलाना । इस प्रकार स्वाध्याय द्वारा वस्तु अधिगमों एवं स्याद्वाद आदि सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त कर साधु समाज