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86 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
कि वर्धमान और पार्श्वनाथ से पूर्व भी जैन मत प्रचलित था । यजुर्वेद में तीन तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख है - ऋषभदेव, अजितनाथ एवं अरिष्टनेमि । "
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न्यायमूर्ति रांगलेकर (बम्बई हाई कोर्ट) के अनुसार " आधुनिक ऐतिहासिक शोध से यह प्रकट हुआ है कि यथार्थ में ब्राह्मण धर्म का सद्भाव अथवा हिन्दु धर्म रूप में परिवर्तन होने के पहले, बहुत काल पहले जैन धर्म इस देश में विद्यमान था । " भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र ने इतिहास समुच्चय में लिखा है, कि " काश्मीर के राजवंश में 47वां अशोक राजा हुआ, इसने 62 वर्ष तक राज्य किया, श्री नगर इसी ने बसाया और जैन मत का प्रसार किया, यह राजा शाचीनर का भतीजा था, मुसलमानों ने इसको शुकराज या शकुनिका बेटा लिखा है, इसके वक्त में श्रीनगर में छः लाख मनुष्य थे, इसका सत्ता समय 1394 ई०पू० का है।'
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उपर्युक्त कथन से यह बात सिद्ध होती है, कि आज से 3401 वर्ष पहले कश्मीर तक जैन धर्म प्रचार पा चुका था और बड़े-बड़े राजा लोग इस धर्म को मानने वाले थे। रामायण के समय का वर्णन करते हुए लेखक लिखते हैं, कि " अयोध्या के वर्णन में उसकी गलियों में जैन फकीरों का फिरना लिखा है, इससे प्रकट हैं कि रामायण के बनने से पहले जैनियों का मत था ।'
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स्वामी राममिश्र शास्त्री के अनुसार "जैन दर्शन वेदान्तादि दर्शनों से भी पूर्व का है। तब ही तो वेदव्यासजी ब्रह्मसूत्रों में कहते हैं, 'नैकस्मिन संभवात् । ' जब वेदव्यास जी के ब्रह्मसूत्र प्रणयन के समय पर जैनमत था, जब तो उसके खण्डनार्थ उद्योग किय गया। यदि वह पूर्व में नहीं होता तो वह खण्डन कैसा और किसका ? वेदों में अनेकान्तवाद का मूल मिलता है ।........ सृष्टि की आदि से जैन मत प्रचलित है।" जैसे कालचक्र ने जैनमत के महत्त्व को ढाँक दिया है, वैसे ही उसके महत्व को जानने वाले लोग भी अब नहीं रहे।
श्री वरदकान्त मुखोपाध्याय के अनुसार “शंकराचार्य स्वयं स्वीकार करते हैं. कि जैन धर्म अति प्राचीन काल से है । वे बादरायण व्यास के वेदान्त सूत्र के भाष्य कहते हैं, कि दूसरे अध्याय द्वितीय पाद के सूत्र 33-36 जैन धर्म ही के सम्बन्ध में है। शारीरिक मीमांसा के भाष्यकार रामानुज का भी यही मत है । '
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श्री विद्यालंकार ने भी लिखा है, "जैन धर्म बहुत प्राचीन धर्म है और महावी से पहले तेईस तीर्थंकर हो चुके हैं, जो उस धर्म के प्रवर्तक या प्रचारक थे। सब पहले तीर्थंकर राजा ऋषभदेव थे, जिनके पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भार वर्ष पड़ा।"
नाना लाल चि. मेहता के अनुसार " चीनी तुर्कस्तान के गुहा मंदिरों में उसके प्रासंगिक चित्र भी देखने को हमें मिल जाते हैं।
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प्रो० जैनी के अनुसार " अनेक प्रमाणों से यह सिद्ध किया जा सकता है