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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 103
में प्रकाशित किए हैं। ये शिलालेख ईसा के 150 वर्ष पूर्व से लेकर 1050 वर्ष तक के हैं। उन पर पत्थर का जो काम है, वह बहुत बारीकी का है। उस पर जो मूर्तियाँ और बेलबूटे हैं. वे सब प्रायः इस देश की शिल्पकला से ही सम्बद्ध है। कुछ विद्वानों का मत है, कि फारस, असिरिया और बाबुल की कारीगरी की भी कुछ झलक उनमें है। इस टीले से प्राप्त सामग्री जैन आगमों में उल्लिखित बातों की प्रामाणिकता को सिद्ध करती है। इन शिलालेखों और चित्रों से जैनों के प्राचीन इतिहास और धर्म की अनेक बातों पर प्रकाश पड़ता है। भारत की प्राचीन वर्णमालाएँ तथा प्राकृतिक भाषाओं और उनके व्याकरण एवं शिल्पकला तथा राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था का ज्ञान होता है ! इन शिलालेखों से यह तो निश्चित रूप से सिद्ध हो जाता है, कि जैन धर्म बहुत प्राचीन है। हजारों वर्ष पूर्व भी इस धर्म के अनुयायी 24 तीर्थंकरों की परम्परा में विश्वास रखते थे।
___4. स्मारक : प्राचीन काल में बने स्मारक, स्तूप, भवन मन्दिर आदि की निर्माण शैली व बनावट से उस काल की संस्कृति, धर्म आदि का ज्ञान होता है। उत्तर भारतीय मंदिरों की शैली ‘नागर' शैली कही जाती है। दक्षिण भारत के मन्दिरों की शैली द्रविड़ शैली कही जाती है। इनके संयोग से बनी शैली को बेसर शैली कहा जाता है। संपूर्ण भारत व भारत से बाहर भी अनेक स्थानों पर प्राचीन मंदिर स्तूप आदि आज भी जैन धर्म की प्राचीनता एवं विशालता की गाथा गा रहे हैं।
प्राचीनकाल से ही मथुरा जैनों का पवित्र तीर्थस्थल रहा है। जैन साहित्य के अनुसार मथुरा के जैन धार्मिक प्रतिष्ठान अति प्राचीन हैं और वे कई तीर्थंकरों से जुड़े हैं। जिन प्रभसूरि (चौदहवीं शती) के मतानुसार “मथुरा में स्वर्ण एवं मणि निर्मित एक स्तूप था, जिसका निर्माण देवी कुबेरा ने सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के सम्मान में करवाया था! दीर्घकाल पश्चात् तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मथुरा यात्रा के पश्चात् देवी के आदेश से इस स्तूप पर ईंटों का आवरण चढ़ाया गया और उसके पार्श्व में एक प्रस्तर प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई। महावीर निर्वाण से तेरह शताब्दियों के पश्चात् बप्पभट्टी सृरि की प्रेरणा से इस स्तूप का जीर्णोद्धार किया गया। विविध तीर्थकल्प में मथुरा के श्री सुपार्श्व-स्तूप को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल बताया गया है। 25 . सन् 1890 ई. में मथुरा के खुदाई के कार्य में यह स्तूप निकल आया। इसका उल्लेख पूर्व में प्राप्त एक मूर्ति के अभिलेख में भी था। पुरातत्त्वज्ञों ने यह अनुमान किया है, कि यह स्तूप ईस्वी सन् से कई सदियों पहले बन चुका था। यह इमारत देश में बहुत पुरानी है।
इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत में भी अनेक प्राचीन स्मारक विद्यमान हैं। तमिलनाडु की पर्वत श्रेणियों में अनेक मनोहारी प्राकृतिक गुफाएँ हैं, जिन्हें जैन मुनियों के आवास के योग्य बनाने के लिए उनमें प्रस्तर शय्याओं और शिला-प्रक्षेपों का