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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता 121
320. जैन पत्र वर्ष 35, अंक 9, ता. 3/1/37
321., 1/14/89/6, 1/24/180/40, 3/4/53/7, 10/12/118/1 322. यजुर्वेद, 15/18
323. वही, 19/50
324. . सामवेद पूर्वाचिक, 1/10/4, 1/10 /2, 3/11/1,
सामवेद उत्तरार्चिक, 1/2/2,6/2/3,20/5/2,5/3/2, 17/3/3,5/5/2,25/19 325. अथर्ववेद, 12/3/3/44-45
326. महाभारत का शान्ति पर्व, 288/4, 5,6
327. सगर चक्रवर्ती से अन्य कोई सगर राजा होना चाहिये ।
328. हरिवंश, 1/34 / 1, 2, 3, 11, 15, 16
329., 1/34/17, 18, 21, 22, 23, 35/17
330. उत्तरपुराण, 71/29-32,37,38,46
331. त्रिशष्टि शलाका पुरिस चरित्र, श्लोक 320-321 332. उत्तरपुराण, 71/137-170
333. वही, 71/179-181
334. वही, 71/182-187
335. वही, 72/272-274
336. The Sacred Books of the East, Vol. XLV; Introduction Page 21: ‘That parsva was a historical person, is now addmited by all as very probable.............
337. Indian philosophy : Vol. I, Page 287 ; S. Radhakrishnan.
338. The wonder that was India : Page 287&288, A. L. Basham, B.A., Ph.D., F.R.A.S., Reprinted 1956.
339. N.C. Raychodhary: Political History of Ancient India, Page 52 340. Dr. S. Radhakrishnan : The Princiapl of Upnishadas, P. 22
341. History of the Sanskrit Literature, p. 226
342. भगवान पार्श्व: एक अनुशीलन, पृ॰ 18
343. संस्कृति के चार अध्याय, पृ० 125, रामधारी सिंह दिनकर
344. प्लवा ह्येते अदृढ़ा यज्ञरूपा अष्टादशोवतमवरं येषु कर्म ।
एच्छ्रेयोयेऽभिनन्दन्ति मूढ़ा जरामृत्युं ते पुनरेवापि यन्ति ॥ मुण्डकोपनिषद्, 1/2/7 345. (i) छान्दोग्य उपनिषद्, 5/3/1-7
(ii) वृहदारण्यक उपनिषद्, 6/2/8
346. (i) मज्झिम निकाय - महासिंहनाद सुत्त, 1/1/2
(ii) भगवान बुद्ध - धर्मानन्द कौशाम्बी, पृ० 68-69
347. Mrs. Rhys Davids : Gautama The Man, p. 22-25 348 उत्तराध्ययन, 23