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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 85
गया। उसके पश्चात् वे तपश्चरण करते हुए बारह वर्ष तक छद्मथ अवस्था में भ्रमण करते रहे। फिर एक दिन वे जम्भृक ग्राम के पास ऋजुकूला नदी के किनारे मनोहर वन में साल वृक्ष के नीचे तेला का नियम लेकर प्रतिमायोग से विराजमान हुए। वैशाख शुक्ला दशमी के दिन अपराह्न काल में हस्त और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के बीच में चन्द्रमा के आ जाने पर प्रभु महावीर को केवलज्ञान हुआ। सौधर्मेन्द्र ने चतुर्थ ज्ञान कल्याणक की पूजा की।
धर्म परिवार : महावीर भगवान ने केवलज्ञान के 24 घंटे पश्चात् प्रथम देशना दी, तब इन्द्रभूति गौतम प्रभु से उद्बोधन पाकर अपने पाँच सौ शिष्यों के साथ, प्रभु के पास दीक्षित हो गए और महावीर के प्रथम गणधर हुए। उनके पश्चात् वायुभूति, अग्निभूति, सुधर्म, मौर्य, मौन्द्रय, पुत्र, मैत्रैय, अकम्पन, अन्धवेला तथा प्रभास आदि दस गणधर हुए। इनके अतिरिक्त तीन सौ ग्यारह अंग और चौदह पूर्वो के धारक थे, नौ हजार नौ सौ यथार्थ संयम को धारण करने वाले शिक्षक थे, एक हजार तीन सौ अवधिज्ञानी थे, सात सौ केवलज्ञानी थे, नौ सौ विक्रियाऋद्धि के धारक थे, पाँच सौ पूजनीय मनः पर्ययज्ञानी थे और चार सौ अनुत्तरवादी थे। इस प्रकार सब मिलाकर चौदह हजार मुनिराज थे। चन्दना आदि छत्तीस हजार आर्यिकाएँ थीं, एक लाख श्रावक थे, तीन लाख श्राविकाएँ थीं। असंख्यात देव-देवियाँ और संख्यात तिर्यंच थे। इस प्रकार बारह प्रकार की सभाओं को तीर्थंकर महावीर ने अर्धमागधी भाषा में प्रतिबोधित किया। उन्होंने छहद्रव्य, साततत्त्व, संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का प्रमाण नय और निक्षेप आदि उपायों के द्वारा विस्तारपूर्वक निरुपण किया। भगवान का उपदेश सुनकर भव्य बुद्धि वाले कितने ही सभासदों ने संयम धारण कर लिया और कितनों ने ही सम्यग्दर्शन धारण कर लिया।
निर्वाण : भगवान महावीर अनेक देशों में विहार करते हुए धर्म के वास्तविक स्वरूप का प्रसार करते रहे। अन्त में पावापुरी नगर में जाकर मनोहर नामक उद्यान में बेले का नियम लेकर विराजमान हो गए। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के अन्तिम समय में स्वाति नक्षत्र में एक हजार मुनियों के साथ मोक्षगामी हुए। उसी रात्रि में उनके प्रथम गणधर गौतम स्वामी को केवलज्ञान हुआ। जैन दर्शन की प्राचीनता पर दार्शनिक व इतिहासविदों के मत :
जैन संस्कृति की प्राचीनता के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने गहन शोध के आधार पर जो निष्कर्ष निकाले और अपने मन्तव्य प्रस्तुत किये हैं, उन्हें जानना भी समीचीन होगा। हम जान सकते हैं, कि जैन धर्म की प्राचीनता को विद्वानों ने किस प्रकार स्वीकार किया है। ___ डॉ. एस. राधाकृष्णन् के अनुसार, "ईसा से एक शताब्दी पूर्व भी ऐसे लोग थे, जो ऋषभदेव की पूजा करते थे। जो सबसे पहले तीर्थंकर थे। इसमें कोई सन्देह नहीं,