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96 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
लिखा है, कि यह मूर्ति ईस्वी सन् 156 वर्ष पूर्व स्थापित हुई थी और यह मूर्ति एक ऐसे स्तूप के हत्थे में थी, जिसको स्वयं देवताओं ने बनाया
था।
मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई का कार्य अभी पूर्ण नहीं हआ है, उसमें अभी भी न जाने कितनी अनमोल निधियाँ इतिहास की प्रमाण पुरस्सरता को अपने में समेटे हुए भूगर्भ में ही उत्खनन शोध के लिए अपेक्षित रूप में विद्यमान है। कंकाली टीले के अतिरिक्त भी उत्खनन में अनेक स्थानों पर जैन धर्म की प्राचीनता के अनेक पुरातात्तिवक प्रमाण प्राप्त हुए हैं। जैसे - 1. श्री स्थम्भन तीर्थ में एक पार्श्वनाथ की प्राचीन मूर्ति है, उसके पृष्ठभाग में एक शिलालेख खुदा हुआ है -
"नमे स्तीर्थे कृत स्तीर्थे, वर्षे द्विक चतुष्टये।
आषाढ़ श्रावको गौड़ोऽकारयत् प्रतिमा त्रयम्॥" अर्थात् इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नमिनाथ के 2222 वर्षों के बाद गौड़ देश के आषाढ नामक श्रावक ने तीन मूर्तियाँ बनावाकर प्रतिष्ठा करवाई थी। उनमें एक चारुप नगर में, एक श्रीपत्तन में और एक स्तम्भनतीर्थ में विराजित
की। इन प्रतिमाओं का समय प्रायः पाँच लाख वर्षों का है। 2. आकोला (बरार) के पास एक ग्राम में भूगर्भ में से कई मूर्तियाँ मिली हैं
जिनमें कई मूर्तियाँ तो विक्रम संवत् से कई शताब्दियों पहले की बताई जा
रही हैं। 3. पटना के पास खुदाई का कार्य करते हुए जो मूर्तियाँ मिली हैं, वे सम्राट
कोणिक (अशोक) के समय की बताई जाती है। 4. जैतलसेर (काठियावाड़) के पास डाका ग्राम से मिली हुई जैन मूर्तियाँ भी
विक्रम पूर्व कई शताब्दियों की हैं। 5. मथुरा से 14 मील की दूरी पर परखम ग्राम है। वहाँ की खुदाई में मिली
हुई मूर्तियाँ विक्रम पूर्व 250 वर्षों की हैं। 6. वैनातट के खुदाई काम से प्राप्त हुई जैन मूर्तियाँ भी 2300 वर्ष प्राचीन हैं। 7. घन कटक प्रान्त के भूगर्भ से मिली हुई जैन मूर्तियाँ चक्रवर्ती खारवेल के
दो सौ वर्ष पहले की हैं। 8. श्रावस्ती नगर के पास खुदाई का काम करते समय भूगर्भ में से एक
संभवनाथ का मन्दिर मिला है। वह भगवान महावीर के समय या उनसे
भी प्राचीन है। 9. भारत के बाहर भी जैन धर्म का प्रसार पुरातन काल में रहा है। कुछ वर्ष
पूर्व आस्ट्रिया के बुडापेस्ट नगर के समीपवर्ती खेत में एक किसान को