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90 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
कोठारी, स्व. श्री वासुदेव शरण अग्रवाल एवं श्री अगरचंद जी नाहटा ने भी इस विवरण के कई एक संस्करण प्रकाशित करा दिए हैं।
दूसरा विवरण मिलता है, अहमदाबाद के व्यापारी पद्मसिंह की सपरिवार दूर देशान्तर की यात्रा का। यह विवरण स्वयं पद्मसिंह ने यात्रा से लौटकर हैदराबाद से अहमदाबाद में रह रहे रतनचंद भाई को लिखे अपने पत्र में किया था। यह पत्र भी मुनि श्री कान्तिसागर जी ने प्रकाशित करवा दिया। पद्मसिंह जी ने यह यात्रा स. 1805 में प्रारम्भ की थी और 16 वर्ष बाद सं. 1821 में वह लौटकर सकुशल स्वदेश आए थे।
, उनकी यात्रा का मार्ग इस्तंबूल तक प्रायः वही रहा, जो बुलाकिदास का रहा है। लेकिन उसके आगे वे अजितनाथ जी के मन्दिर से युक्त किसी ताल, तलंगपुर, चंद्रप्रभु तीर्थ, नवापुरी, पाटण और तारातंबोल (द्वितीय) की यात्रा का विवरण देते हैं। पद्मसिंह जी इस्पहान को आशापुरी तथा इस्तंबूल को तारातंबोल नाम देते हैं। ऐसा संभव है, कि ध्यान चूक जाने से या विस्मृति से प्रवाह में लिखा गया है।
दिगम्बर जैन पुस्तकालय कापड़िया भवन, सूरत से प्रकाशित एक अन्य ग्रन्थमाला में भी उत्तर दिशा के तीर्थ वर्णन में पूर्व से पश्चिम में बहने वाली गंगानदी के किनारे पर अनेक जैन मंदिरों की विद्यमानता का उल्लेख किया गया है। उसमें तारातंबोल में भी जैन मंदिरों और मूर्तियों की वंदना के साथ-साथ, किसी जवलागवला नामक शास्त्र की विद्यमानता की भी सूचना दी है। तीर्थमाला में तारातंबोल के मार्ग में मांगी तुंगी पर्वत पर 28 हाथ (42 फुट) चौड़ी तथा 48 हाथ (72 फुट) ऊँची मूर्ति का भी उल्लेख है, जिसके पाँव के अंगूठे पर 28 नारियल ठहर सकते थे। इसी प्रकार एक ऐसे सवरोवर का भी उल्लेख किया है, जिसमें 6 हाथ x 10 हाथ आकार की शान्तिनाथ जी की प्रतिमा स्थित थी।
पद्मसिंह जी ने इस्तंबूल में मुकुट स्वामी की 38 हाथ x 28 हाथ (57 फुट x 42 फुट) आकार की निराधार खड़ी मूर्ति का वर्णन किया है, जिसके पाँव के अंगूठे पर भी उपर्युक्त मांगीतुंगी पर्वत पर खड़ी मूर्ति के पाँव के अंगूठे के समान 28 नारियल रखे जा सकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, कि दोनों वर्णन एक ही मूर्ति के हैं। इस्तंबूल में निराधार खड़ी इस विशाल मूर्ति का वर्णन हमें इसी नगर में खड़ी हरक्यूलिस की इस विशाल मूर्ति की याद दिलाता है, जो विश्व के आठ आश्चर्यों में से एक मानी जाती रही है।
पद्मसिंह जी इस्तंबूल से 600 कोस की दूरी पर स्थित किसी ताल में अजितनाथ जी की 20 हाथ x 6 हाथ ।। 30 x 9 वर्ग फुट आकार की मूर्ति की विद्यमानता का वर्णन करते हैं। जहाँ वे नाव के द्वारा गये थे। वहाँ से वे 500 कोस दूरस्थ तलंगपुर नगर का वर्णन करते हैं और बताते हैं, कि वहाँ 28 जैन मंदिर थे।