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76 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
"गान्धारी चैव माद्री च, क्रोष्टोर्भार्ये बभूवतुः। ... गान्धारी जनयामास अनमित्रं महाबलम्।
माद्री युधाजितं पुत्र, ततोऽन्यं देवमीढ़षम्।
तेषांवंशस्त्रिधाभूतो, वृष्णीनां कुलवर्धनः॥" अर्थात् क्रोष्टा की माद्री नाम की दूसरी रानी से युधाजित और देवमीढ़ष नामक दो पुत्र हुए।
माद्रयाः पुत्रस्य जज्ञाते, सुतौ वृष्ण्यन्धकावुभो।
जज्ञाते तनयौ वृष्णे:, स्वफल्काश्चित्रकस्तथा। अर्थात् क्रोष्टा के बड़े पुत्र युधाजित के वृष्णि और अन्धक नामक दो पुत्र हुए। वृष्णि के दो पुत्र हुए-स्वफल्क तथा चित्रक।
“अक्रूरः सुषुवे तस्माच्छ्व फल्काद् भूरि दक्षिणः॥" अर्थात् स्वफल्क के अक्रूर नामक महादानी पुत्र हुए।
चित्रकस्याभवन् पुत्राः, पृथुर्विपृथुरेव च। अश्वग्रीवोऽश्वबाहुश्च, सुपार्श्वक गवेषणौ ॥
अरिष्टनेमिरश्वश्च, सुधर्मा धर्म भृत्तथा।
सुबाहुर्बहुबाहुश्च, श्रविष्ठाश्रवणे स्त्रियौ। अर्थात् चित्रक के पृथु, विपृथु, अश्वग्रीव, अश्वबाहु सुपार्श्वक, गवेषण, अरिष्टनेमि, अश्व, सुधर्मा, धर्मभृत, सुबाहु और बहुबाहु नामक बारह पुत्र तथा श्रविष्ठा व श्रवणा नाम की दो पुत्रियाँ हई।
हरिवंश पुराण में वेदव्यास जी ने श्री अरिष्टनेमि जी के वंश वर्णन के साथसाथ श्री कृष्ण के वंश का वर्णन भी इस प्रकार से किया है -
'अश्मक्यां जनयामास, शूरं वै देवमीढुषः। महिष्यां जज्ञिरे शूराद्, भोज्यायां पुरुषा दश। वसुदेवो महाबाहु पूर्वमानक दुंदुभिः ।....... देवभागस्ततोजज्ञे, तथा देवश्रवा पुनः । अनाधृष्टि कनवको, वत्सवानाथ गृजिमः॥ श्यामः शमी को गण्डूषः, पाँच चास्य वरांगनाः।
पृथुकीर्ति पृथा चैव, श्रुतदेवा श्रुतश्रवाः॥ राजाधि देवी च तथा पंचैते वीरमातरः। ........
वासुदेवाच्च देवक्यां, जज्ञे शौरि महायशाः ।...' __ अर्थात् यदु के क्रोष्टा, क्रोष्टा के दूसरे पुत्र देवमीढुष के पुत्र शूर तथा शूर के वसुदेव आदि दस पुत्र तथा पृथुकीर्ति आदि पाँच पुत्रियाँ हुईं। वसुदेव की देवकी नाम