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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 75
"रेवानगर के राज्य का सु... जाति के देव 'नेबुशदनेझर' हुए वे यदुराज (श्रीकृष्ण) के स्थान द्वारका आया, उसने एक मन्दिर सर्व......... देव नेमि जो स्वर्गसदृश रेवत (गिरनार) पर्वत के देव हैं, उसने मन्दिर बनाकर सदैव के लिए अर्पण किए।"320
यद्यपि इस ताम्रपत्र का 'नेबुशदनेझर' राजा का समय ई.पू. छठी शताब्दी का बतलाया जाता है। उस समय गिरनार पर्वत पर भगवान नेमिनाथ का एक मन्दिर था और वे नेमिनाथ जैनों के बाईसवें तीर्थंकर थे, जो श्री कृष्ण के समकालीन हुए थे।
ऋग्वेद में अरिष्टनेमि शब्द बार-बार प्रयुक्त हुआ है।" ऋग्वेद में कई स्थानों पर तार्थ्य अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है। यजुर्वेद में नेमिनाथ जी के लिए तार्थ्य अरिष्टनेमि तथा आङ्गिरस नाम भी प्रयुक्त हुआ है। यथा -
1. अयमुत्तरात् संयद्वसुस्तस्य तार्थ्यश्चारिष्टनेमिश्च सेनानी ग्रामण्यौ ॥ 2. अङ्गिरसो नःपितरो नवग्वा अथर्वाषोभृगवः सोभ्यासः ॥
सामवेद में भी अनेक स्थानों पर नेमिनाथ, तार्क्ष्य अरिष्टनेमि तथा अंङ्गिरस नामों के उल्लेख के साथ उनकी स्तुति की गई है। अथर्ववेद में भी ज्ञान को फैलाने वाले के रूप में अंङ्गिरस की स्तुति की गई है। यथा -
इदं प्रापमुत्तमं काण्डमस्य यस्माल्लोकात् परमेष्ठी समाप। __ आ सिञ्च सर्पिधृतवत् समग्ध्येय भागो अङ्गिरसो न अत्र ॥5
महाभारत में भी तार्क्ष्य शब्द अरिष्टनेमि के पर्यायवाची के रूप में प्रयुक्त हुआ है।" उन तार्थ्य अरिष्टनेमि ने राजा सगर को जो मोक्ष सम्बन्धी उपदेश किया है, उसकी तुलना जैन धर्म के मोक्ष सम्बन्धी मन्तव्यों से की जा सकती है।"
तार्क्ष्य अरिष्टनेमि ने सगर से कहा - "सगर! संसार में मोक्ष का सुख ही वास्तविक सुख है, किन्तु धन, धान्य, पुत्र एवं पशु आदि में आसक्त मूढ़ मनुष्य को इसका यथार्थ ज्ञान नहीं होता। जिसकी बुद्धि विषयों में अनुरक्त एवं मन अशान्त है, ऐसे जनों की चिकित्सा अत्यन्त कठिन है। स्नेह बन्धन में बन्धा हुआ मूढ मोक्ष पाने के योग्य नहीं है।'
ऐतिहासिक दृष्टि से स्पष्ट है, कि सगर के समय में वैदिक लोग मोक्ष में विश्वास नहीं करते थे, अतः यह उपदेश किसी वैदिक ऋषि का नहीं हो सकता।
हरिवंश पुराण में महाभारतकार वेदव्यास जी ने श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि के चचेरे भाई होने का उल्लेख किया है। जो इस प्रकार है --
___ “वभुवस्तु यदोः पुत्रा: पंच देव सुत्तोपमाः।
सहस्रदः पयोदश्च, क्रोष्टा नीलांऽजिकस्तथा।" अर्थात् महाराज यदु के सहस्रद, पयोद, क्रोष्टा, नील और अंजिक नाम के देवकुमारों के तुल्य पाँच पुत्र हुए।