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जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता* 79
23. श्री पार्श्वनाथ जी :
तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान को वर्तमान युग के अनेक इतिहासविदों ने गहन अनुसंधान के पश्चात् एक ऐतिहासिक महापुरुष स्वीकार किया है। सर्व प्रथम डॉ. हरमन जैकॉबी ने जैनागमों के साथ-साथ बौद्ध पिटकों के प्रमाणों के प्रकाश में भी भगवान पार्श्व को एक ऐतिहासिक पुरुष सिद्ध किया है। उसके पश्चात् कोलब्रुक, स्टीवेन्सन, एडवर्ड, थामस, डॉ. बेलवलकर, दास गुप्ता, डॉ. राधाकृष्णन्,” शपेन्टियर, गेरीनोट, मजूमदार, ईलियट और पुसिन प्रभृति अनेक पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने भी यह सिद्ध किया है, कि महावीर के पूर्व भी एक निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय विद्यमान था, जिसके प्रधान भगवान पार्श्वनाथ थे।
डॉ. वासम के अभिमतानुसार भगवान महावीर को बौद्ध पिटकों में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में अंकित किया गया है, अतः उनकी ऐतिहासिकता तो असंदिग्ध है। भगवान पार्श्वनाथ चौबीस तीर्थंकरों में से तेईसवें तीर्थकर के रूप में प्रख्यात थे।
भगवान पार्श्वनाथ जी भगवान महावीर से पूर्व तेइसवें तीर्थंकर हुए थे। यह जैन आगमों में तो स्पष्ट रूप से विवेचित है। इसके अतिरिक्त जैन, बौद्ध तथा वैदिक तीनों के साहित्य में स्पष्ट विवेचन मिलता है, कि भगवान बुद्ध और पार्श्वनाथ कालीन वैदिक ऋषियों पर भी निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय (भगवान पार्श्वनाथ) के दर्शन का प्रभाव था। उपनिषदों का रचनाकाल तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पश्चात् का है।
एन.सी. रायचौधरी का मत है, कि विदेह के महाराज जनक याज्ञवल्क्य के समकालीन थे। याज्ञवल्क्य, वृहदारण्यक और छान्दोग्य उपनिषद् के मुख्य पात्र हैं। उनका कालमान ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी है। जैन तीर्थंकर पार्श्व का जन्म ई.पू. 877
और निर्वाण काल ई.पू. 777 है। इससे यही सिद्ध होता है, कि प्राचीनतम उपनिषद् पार्श्व के पश्चात् के हैं।
डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार प्राचीनतम उपनिषदों का कालमान ई.पू. आठवीं शताब्दी से ई.पू. तीसरी शताब्दी तक है।40
आर्थर ए. मैकडॉनल के अभिमतानुसार प्राचीनतम वर्ग वृहदारण्यक छान्दोग्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय और कौशितकी उपनिषद् का रचना काल ई.पू. 600 है।
भगवान पार्श्वनाथ जी का अस्तित्त्व काल ई.पू. दसवीं शताब्दी है। कालगणना के अनुसार श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण ई.पू. 528 में हुआ था। उनका जीवन काल 72 वर्ष का था। भगवान पार्श्व भगवान महावीर से 250 वर्ष पूर्व हुए थे। उनका जीवनकाल 100 वर्ष था।
अतः वैदिक संस्कृति पार्श्वनाथ भगवान के उपदेशों से बहुत प्रभावित हुई। जैसा कि महाकवि निकर लिखते हैं, "हिदुत्व और जैन धर्म आपस में घुलमिलकर इतने एकाकार हो गए हैं, कि आज का साधारण हिन्दु यह जानता भी नहीं है, कि