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18/जैन समाज का वृहद् इतिहास
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी :
भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी की स्थापना विक्रम संवत् 1959 को भा, दि. जैन महासभा के अधिवेशन पर प्रस्ताव ने. 1 के अनुसार महासभा की एक सब कमेटी के रूप में हुई। इसके पश्चात् तीर्थक्षेत्र कमेटी ने स्वतन्त्र संस्था के रूप में 24 नवम्बर सन् 1930 में अपना विधान रजिस्टर करा लिया। कमेटी ने अपना दिगम्बर जैन क्षेत्री, अतिशय क्षेत्री, जिन मन्दिरों, प्रतिमाओं, जैन कलाकृतियों एवं धर्मायतनों की रक्षा एवं व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य रखा। कमेटी ने भारतवर्ष के समस्त तीर्थक्षेत्रों को 6 प्रदेशों में विभाजित किया। इनमें पूर्व प्रदेश (बंगाल, बिहार, उड़ीसा प्रान्त), पश्विम प्रदेश (गुजरात एवं महाराष्ट्र), उत्तर प्रदेश, दक्षिण प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में छह प्रादेशिक समितियों बनाई गई।
विगत 60 वर्षों से तीर्थक्षेत्र कमेटी तीयों के पुख्ता संरक्षण एवं जीर्णोद्धार के कार्य कर रही है। दिगम्बर जैन तीर्थों पर आये दिन विभिन्न प्रकार के संकटों में कमेटी सतत् प्रयत्नशील रहती है। इसके अध्यक्ष समाज के सर्वमान्य प्रतिष्ठित व्यक्ति रहते रहे हैं। सर सेठ हुकमवन्दजी कासलीवाल - इन्दौर, सेठ भागचन्द जी सोनी, सेठ लालचन्द दोशी, साहू शान्ति प्रसाद जी जैन एवं साहू श्रेयान्स प्रसाद जी जैसे सर्वमान्य व्यक्ति इसके अध्यक्ष रह चुके है। वर्तमान में श्री साहू अशोककुमार जी जैन इसके अध्यक्ष एवं श्री जयचन्द लुहाडे उसके महामंत्री है इसका कार्यालय हीराबाग, बम्बई में है।
जैन समाज की जनसंख्या :
सन् 1891 से लेकर अब तक 10 बार जनगणना हो चुकी है। सन् 1991 की जनगणना भी हो चुकी है लेकिन उसके आंकडे प्राप्त नहीं हो सके है। अब तक की जनगणना के अनुसार 10 दशकों में जैन जनसंख्या निम्न प्रकार रही : सन् 1891
14,16,635 1911
13,34,148 1961
20,27,246 1971
25,04,646 1981
32,06,038 1991
- 40,00,000 (अनुमानित) जनसंख्या के उक्त अकिडो से पता चलता है कि जैन समाज विगत 100 वर्षों में 14 लाख से 32 लाख तक पहुंच सकी जबकि भारत की आबादी तिगुनी से अधिक हो गई। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में जैन समाज की जनसंख्या 45 लाख होनी चाहिये थी। इस तरह समाज की जन-शक्ति निरन्तर हास पर है और यह तो तब है जब लोगों में जनगणना में धर्म के कॉलम में जैन लिखाने की भावना में वृद्धि हुई है और जैन पत्रों ने बार-बार लोगों से आग्रह किया है कि वे धर्म के कॉलम में केवल जैन ही लिखवाये। जाति एवं सम्प्रदाय के चक्कर में नहीं फंसे ।