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कौटिल्य का अर्थशास्त्र
मनु, भारद्वाज, विशालाक्ष, शुक्र (वही जिन्हें हम उशना कहते हैं) तथा इन्द्र (सम्भवतः कौटिल्य का बाहुदन्तिपत्र)। वात्स्यायन के कामसत्र में घोटकमख एवं चारायण के नाम आये हैं। नयचन्द्रिका के मतानसार पिशन, भारद्वाज, कौणपदन्त एवं वातव्याधि क्रम से नारद, द्रोणाचार्य, भीष्म एवं उद्धव हैं।
कौटिलीय ने चारों वेदों, अथर्ववेद के मन्त्रप्रयोग, छ: वेदांगों, इतिहास, पुराण, धर्मशास्त्र एवं अर्थशास्त्र की चर्चा की है। इसमें सांख्य, योग एवं लोकायत की शाखाओं की ओर भी संकेत आया है। इसने मौहूर्तिक, कार्तान्तिक (फलित ज्योतिष जाननेवालों), बृहस्पति ग्रह एवं शुक्र ग्रह की भी चर्चा की है। धातुशास्त्र का. नाम भी आया है। उस समय संस्कृत ही राजभाषा थी। शासनाधिकार में काव्य-गुणों की भी चर्चा की गयी है, यथा माधुर्य, औदार्य, स्पष्टत्व, जो अलंकारशास्त्र के प्रारम्भ की सूचक है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि दूसरी शताब्दी (१५० ई०) में रुद्रदामन् के अभिलेख में काव्य-गुणों की चर्चा है। कौटिल्य ने प्रस्तर एवं ताम्र पर तक्षित अनुशासनों की कोई चर्चा नहीं की है। उनके अर्थशास्त्र में वैशिक-कलाज्ञान (२.२७) की ओर भी संकेत है।
जिन देशों एवं लोगों की चर्चा कौटिलीय में हुई है, उनमें कुछ उल्लेख के योग्य हैं। चीन के रेशम (कौशेय) एवं नेपाल के कम्बल की चर्चा हुई है। कीथ के कथनानुसार 'चीन' नाम चीन देश के 'थ्सिन' नामक राजवंश से बना है; और इस वंश का राज्यारम्भ ई० पू० २७४ में हुआ, अत: कौटिलीय ई० पू० ३०० में नहीं प्रणीत हो सकता। किन्तु 'चीन' शब्द की व्याख्या सरल नहीं है, यह किसी अन्य प्राचीन शब्द से भी सम्बन्धित हो सकात है। हो सकता है कि जहाँ यह शब्द आया है वह सूत्र ही क्षेपक हो। कौटिलीय में वृष्णियों के “संघ", कम्बोज एवं सुराष्ट्र के आयुधजीवी (युद्धजीवी) एवं वार्ताजीवी (कृषि-व्यापार-जीवी) क्षत्रियों की 'श्रेणियों" तथा लिच्छिविक, वृजिक, मल्लक, मद्रक, कुकुर तथा कुरुपञ्चालों का (जो राजा पदवी वाले थे) वर्णन आया है (११.१)। इन गणों में कुछ, यथा लिच्छिवि, वृजि (पालि में वज्जि) तथा मल्ल तो बौद्ध ग्रन्थों में भली भाँति वर्णित हैं। हमें यह वर्णन मिलता है कि कम्बोज, सिन्धु, आरट्ट तथा वनायु के घोड़े अत्युत्तम एवं बाह्लीक, पापेय, सौवीर एवं तैतल के मध्यम श्रेणी के होते हैं। कौटिलीय में म्लेच्छ जाति का भी वर्णन आया है, जिसमें सन्तानों की बिक्री हो पकती है और उन्हें बन्धक रखा जा सकता है (३.१३)।
बौद्धों के विषय में कोई विशिष्ट विवरण नहीं मिलता, केवल एक स्थान (३.२०) पर ऐसा आया है कि उस व्यकि को एक सौ पण (एक प्रकार का सिक्का) देना पड़ेगा, जो अपने घर में देवताओं या पितरों के सम्मान के समय किसी बौद्ध (शाक्य), आजीवक या शूद्र साधु को भोजन के लिए निमन्त्रित करता है। स्पष्ट है कि कौटिलीय के प्रणयन के समय बौद्धों को समाज में कोई उच्च स्थान नहीं प्राप्त हो सका था। आजीवक लोग मक्खलि गोसाल द्वारा स्थापित एक धार्मिक शाखा के अनुयायी थे।
कौटिल्य को प्रचलित महाभारत ज्ञात था कि नहीं, कहना कठिन है। अर्थशास्त्र में उदाहृत, यथा ऐल, दुर्योधन, हैहय अर्जुन, वातापी, अगस्त्य, अम्बरीष, सुयात्र (नल) की अधिकांश गाथाएँ महाभारत में भी आयी हैं। कहीं-कहीं गाथाओं में कुछ अन्तर भी है, यथा जनमेजय ने क्रोध में आकर ब्राह्मणों पर आक्रमण किया और नष्ट हो गया, किन्तु महाभारत में जनमेजय की गाथा कुछ और ही है (१२. १५०)। इसी प्रकार कुछ अन्य कथाओं में भी अन्तर है। कौटिल्य को पुराणों के विषय में जानकारी थी।
८१. तथा कौशेयं चीनपट्टाश्च चीनभूमिजा व्याख्याताः। कौ० २.११ ।
८२. शाक्याजीवकादीन् वृषलप्रजितान् देवपितृकार्येषु भोजयतः शत्यो दण्डः। को० ३-२० । धर्म-५
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