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धन्य-चरित्र/25 मणि-रत्न के वाणिज्य में गुण-दोष का ज्ञाता होने से समस्त रत्न-व्यापारियों द्वारा प्रमाणित था। स्वर्ण के व्यवसाय में सोने-चाँदी के व्यापारियों द्वारा प्रशंसित था। मणिकारों के वाणिज्य में अनेक देशों में होनेवाली वस्तुओं में गुण-दोष के प्रकटन को पहले ही जानकर फिर ग्रहण करता और देता था। सार्थवाह के कर्म में उत्साहपूर्वक, सत्त्वयुक्त, अनेक देशों के आचार, भाषा और मार्ग-कुशलता के द्वारा व्यापारियों को सुखपूर्वक इच्छित स्थान प्राप्त करवाता था।
राज-सेवा में सर्व अवसर पर सावधानीपूर्वक तथा अवसरोचित वाक्पटुता के द्वारा राजा का अतिवल्लभ था। देवों की भक्ति में दृढ़ धैर्य-युक्त, समस्त देव-पूजन विधि में कुशल होने से स्वल्प समय में ही देवों को प्रसन्न कर लेता था।
प्रधानमंत्री के कर्म में अति तेज बुद्धि के द्वारा राजा के चित्त के अभिप्राय को जान लेता था एवं छल-बल से राज्य की रक्षा करता था।
योग क्रियाओं में यम-नियम-आसनादि योग के अंगों को प्रभेद सहित जानता था। औत्पत्तिकी आदि बुद्धि द्वारा बुध-जनों के मन को खुश कर देता था। समस्त नीतियों में विनीत रूप से शोभित होता था।
ज्यादा क्या कहा जाये? सर्व विज्ञान में वह पारगामी था। समस्त कलाओं, तेजों, यशों, विविध गुणों में और बुद्धि में वह कुमार प्रिय संगम-तीर्थ रूप जाना जाता था। बाल-भाव होने पर भी वह गुणों से वृद्ध था।
क्रम से बचपन का अतिक्रमण कर वह तरुणियों के मन को हरनेवाले क्रीड़ावन रूपी यौवन को प्राप्त हुआ। जन्म के समय से ही लेकर धनसार श्रेष्ठी के घर में धन्य-कुमार के भाग्य के अनुभाव से चारों ओर से धन-धान्यादि लक्ष्मी की वृद्धि ही होती गयी। चारों ओर से लक्ष्मी की वृद्धि देखकर उसके पिता करोड़ों लोगों के सामने उसकी प्रशंसा करने लगे। नीति में पुत्र-प्रशंसा निषिद्ध होने पर भी उसके पिता उसके गुणों से आकृष्ट होकर प्रतिक्षण उसकी प्रशंसा करते थे। कहा भी है
__ प्रत्यक्षे गुरवः स्तुत्याः, परोक्षे मित्रबान्धवाः ।
कर्माऽन्ते दासभृत्याश्च, पुत्रा नैव मृता स्त्रियः ।।
अर्थात् प्रत्यक्ष में गुरु की स्तुति करनी चाहिए। परोक्ष में मित्र बान्धव की, कार्य के अन्त में दास-भृत्य आदि की तथा मरने के बाद स्त्री की स्तुति करनी चाहिए, पर पुत्र की कभी भी स्तुति नहीं करनी चाहिए।
__ "जिस दिन से यह पुत्र हुआ है, उस दिन से मेरे घर में मंत्र से आकर्षित की तरह लक्ष्मी सर्व ओर से वृद्धि को प्राप्त हुई है। समस्त पौरजनों के चित्त को चुरानेवाले इस पुत्र के गुण किसी भी निपुण के द्वारा गिनना शक्य