Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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अभिभूत
प्राचीन चरित्रकोश
अभिमन्यु
अभिभूत--(सो. वृष्णि.) वायु के मतानुसार वसु- | पराक्रम--उस स्थान पर, द्रोणाचार्य ससैन्य व्यूह देव तथा रोहिणी का पुत्र ।
की रक्षा कर रहे थे । परंतु अभिमन्यु सेना की पंक्तियाँ अभिमति--अष्टवसु में द्रोणवसु की पत्नी (भा. ६. | तोड कर, व्यूह में प्रविष्ट हो गया । व्यूह में घुसने के पश्चात् ११)।
अभिमन्यू ने, बडे बडे सेनापतियों को अपने शौर्य से अभिमन्यु--(सो. कुरु.) अर्जुन का पुत्र । यह सोमपुत्र | | भगाया । अपनी सेना को, पीछे हटते देख कर, द्रोणावर्चा के अंश से सुभद्रा के उदर में आया। जन्मतः यह चार्य सेना सहित अभिमन्यु पर धावा करने आया परंतु निर्भय, भय उत्पन्न करनेवाला तथा महाक्रोधी प्रतीत होने आक्रमक को चकमा दे कर, इसने अश्मक राजा का तथा के कारण, इसका नाम अभिमन्यु रखा गया (म. आ.
शल्य के बंधु का वध किया । तब कर्ण उस पर आक्रमण २१३)।
करने दौडा । परंतु उसे भी इसने जर्जर कर दिया । दैत्यों के त्रास से भयभीत पृथ्वी को निर्भय करने के
इस प्रकार युद्ध करते करते, अभिमन्यू भीमादिकों से लिये, ब्रह्मदेव ने सब देवताओं को, अंशरूप से पृथ्वी पर
काफी दूर चला गया। अभिमन्यु को अकेला देख कर, जन्म लेने के लिये कहा। उस समय सोम ने देवकार्य के
दुःशासन उसकी ओर दौडा । परंतु उसे भी रण से भगा लिये अपने पुत्र को पृथ्वी पर भेजा । परंतु वर्चा इसका
कर, अभिमन्यु इतनी दूर तक चला गया कि, भीमाअत्यंत प्रिय होने के कारण, यह अधिक दिनों तक पृथ्वी
दिकों को वह दिखता ही न था। भीमादिक सरलता से पर नही रहेगा, केवल सोलह वर्ष ही रहेगा, ऐसा सोम ने
अपने पास आ सकें, इसके लिये इसने मार्ग खुला रखा सब देवताओं से वचन लिया था। इसीसे इसे सोलह
था परंतु जयद्रथ ने रुद्रवर के प्रभाव से, भीमादिक को रोक वर्ष की आयु में मृत्यु प्राप्त हुई (म. आ.६१.८६. परि.
रखा तथा अभिमन्यु तक जाने नहीं दिया। . . १. ४२)। शिक्षण-अभिमन्यु की अस्त्रशिक्षा तथा अन्य युद्ध
मृत्यु--इधर अभिमन्यु, भीमादिकों की राह देखता कला शिक्षा, अर्जुन की खास देखरेख में हुई थी। यह रहा, इतने में, कर्णपुत्र ने इस पर आक्रमण किया। अभिअस्त्रविद्या में इतना प्रवीण था कि, इसके हस्तचापत्य से
मन्यु ने उसका पराभव कर के, दुर्योधनपुत्र लक्ष्मण तथा तथा अस्त्रयोजना नैपुण्य से संतुष्ट हो कर, बलराम ने इसे
अन्य योद्धाओंको मार डाला। तब द्रोण, कृप, कर्ण; रौद्र नामक धनुष दिया। यह अत्यंत पराक्रमी था तथा
अश्वत्थामा, कृतवर्मा तथा बृहद्बल ये छः लोग, अकेले अपने पराक्रम के बल पर, अल्पवयीन होते हुए भी यह ।
अभिमन्यु से युद्ध करने लगे। उन सबका इसने अकेले महारथी बना।
निवारण किया। तब द्रोणादिकों ने बड़े प्रयास से इसे विरथ युद्धप्रस्थान-भारतीय युद्ध में, द्रोण ने बडी कुशलता
किया। अभिमन्यु दाल तथा तलवार ले कर लडने लगा। से अर्जुन को अन्य पांडवों से विलग किया तथा उसे
परंतु द्रोण ने उन्हें भी तोड दिया। तब अभिमन्यु ने सेना के बाहर, संशप्तक की ओर संलग्न कर दिया। तदनंतर
केवल गदा ली तथा दुःशासन के पुत्र के साथ गदायुद्ध द्रोण ने भीमा दि तीनों को युद्ध में व्यस्त किया। इस प्रकार,
आरंभ किया। उस समय अभिमन्यु अत्यधिक श्रान्त हो पांडव तथा अभिमन्यु को अपनी सेना समवेत युद्ध में
गया, परंतु भीमादि काफी दूर होने के कारण, इसे उनकी मन देख कर, युधिष्ठिर चिन्ताग्रस्त हो गया । युधिष्ठिर को
सहायता न मिल सकी। उस समय, दुःशासनपुत्र की चिन्ताग्रस्त देख कर, अभिमन्यु ने उसे चिन्ता का
| गदा का प्रहार इस पर होते ही, इसे मूछी आ गई । उस कारण पूछा। उसपर युधिष्ठिर ने कहा कि, चक्रव्यूह का
मूर्छा से पूर्ण सावधान होने के पहले ही, दुःशासनपुत्र भेद करने वाला अपनी सेना में कोई न होने के कारण, मै | ने और एक गदाप्रहार कर, इसका वध कर दिया (म. चिन्ता कर रहा हूँ। यह सुनते ही, अभिमन्यू ने भीम | द्रा. ४८.१३)। की सहायता से, चक्रव्यूह का भेद करने का काम स्वीकार | व्यक्तिमत्व--अभिमन्यु सिंह के समान अभिमानी किया । चक्रव्यूह में प्रवेश करने की विधि ही केवल अभि- | तथा वृषभ के समान प्रशस्त स्कंधों वाला था। यह शौर्य, मन्यु को ज्ञात थी। फिर भी वह नहीं घबराया । तदनंतर | वीर्य तथा रुप में कृष्णतुल्य था। जन्मतः यह दीर्घबाहु युधिष्ठिर का आशिर्वाद ले कर, अमिमन्यु भीम के साथ | था । यह कृष्ण के समान बलराम को भी अत्यंत प्रिय था व्यूहद्वार के पास आया।
। (म. आ. २१३.५८-७०)।